________________ (356) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध भाइयों के पास दूत भेज कर कहलवाया कि यदि तुम राज करना चाहते हो, तो मेरी आज्ञा में रहो और मेरी सेवा करो, अन्यथा राज्य का त्याग करो। यह सुन कर अठानबे भाइयों ने सोचा कि हमें राज्य तो पिताजी ने दिया है, फिर हम भरत की सेवा क्यों करें? यह सोच कर वे भगवान के पास आये। भगवान ने उन्हें अंगारे बनाने वाले का दृष्टान्त दे कर सूत्रकृतांग सूत्र का वेतालिय अध्ययन सुनाया। इससे प्रतिबोध प्राप्त कर सब भाइयों ने दीक्षा ग्रहण की और वे भगवान के शिष्य हुए। भरत-बाहुबली का युद्ध और बाहुबली की दीक्षा तथा केवलज्ञान ____ मुख्य अधिकारी पुरुष ने भरत से विनती की कि हे स्वामिन्! आपके अठानबे भाइयों ने दीक्षा ग्रहण कर ली है, तो भी चक्ररत्न आयुधशाला में प्रवेश नहीं कर रहा है। तब मंत्रीश्वर ने कहा कि हे स्वामिन्! अन्य तो सब आपकी आज्ञा मानते हैं, पर महा अभिमानी बाहुबली आपकी आज्ञा नहीं मानते। वे अपनी भुजा के बल का पराक्रम बहुत दिखाते हैं। इसलिए उन्हें मूल से उखाड़ देना चाहिये। यह एक ऐसां महारोग है, जो आपके लिए व्याधि उत्पन्न कर रहा है। यह सुन कर भरतराजा ने अपने सुवेग नामक दूत को सब बात समझा कर बाहुबली के पास भेजा। उस दूत के रवाना होते समय पीछे छींक हुई, वस्त्र काँटों में उलझ गया, रथ का पिंजन टूट गया, दाहिनी ओर गधे की आवाज हुई इत्यादिक अनेक अपशकुन मार्ग में हुए, तो भी वह अनेक वन, अटवी और पहाड़प्रमुख पार कर बाहुबली के देश में जा पहुँचा। उसे मार्ग की धूल से भरा देख कर ग्वालिनों और पनिहारिनों ने उससे पूछा कि तुम कौन हो? कहाँ से आये हो? और तुम्हारा स्वामी कौन है? तब दूत ने कहा कि मैं भरतराजा का दूत हूँ। यह सुन कर उन्होंने कहा कि भरत क्या होता है? हमारे पहनने की कंचुली में जो कशीदाकारी करते हैं, वह भरत या बर्तन पर किया जाने वाला भरत या रोग से संबंधित भरत? ये तीन भरत तो हम जानती हैं, पर इन तीन के अलावा और कोई भरत है, यह तो हमने