________________ (346) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध बोले, तो सिद्धिकारक होता है। 8. जो प्राणी रोगादिक से पीड़ित होता है, वह अधिकतर यदि बायीं करवट सोये, तो उसे सुख-समाधि प्राप्त होती है। 9. चन्द्रनाड़ी जब मेरी ओर चलती हो, उस समय यदि शुभ काम का प्रारम्भ किया जाये, तो वह सिद्धिदायक होता है। 9. और सुनो। इस पापी दाहिने हाथ ने प्रभु के विवाह के अवसर पर कन्याओं का हाथ ग्रहण किया, उस समय मुझे नहीं बुलाया। इतना ही नहीं, कंसार भी इसने अकेले ही खाया। इसने यह भी नहीं सोचा कि यह मेरा भाई भूखा है, इसलिए इसे भी बुला कर थोड़ा सा खिला दूँ। ऐसा विचार किए बिना मुझ से छल कर के यह अकेला ही सब खा गया। इससे यह केवल पेटू दीखता है। यह व्यर्थ ही अपने मुख से अपने गुणों का वर्णन करता है। इसकी एक और निष्ठुरता भी मैं बताता हूँ। जिस समय यह मिष्टान्न-पान भोजन करता है, उस समय भोजन तो यह स्वयं करता है, पर मक्खियाँ मुझ से उड़वाता है। फिर भी मैं मेरी दाक्षिण्यता से इसे अपना बड़ा भाई जान कर कुछ नहीं कहता। इस दाहिने हाथ में चतुराई या अन्य कोई गुण नहीं है। जिस समय सिर पर पगड़ी लपेटते हैं, उस समय यह तो जैसे-तैसे लपेट लेता है, पर बाद में लपेट प्रमुख सुधारने का काम, बराबर रचना करना, सुन्दर आकार करना आदि तो सब मैं ही करता हूँ। अरे! ये दाहिना हाथ तो जुआ खेलने वाला है। कितनी बातें तुमसे कहूँ? हम दोनों के अच्छे-बुरे लक्षण तथा गुण और अवगुण सारा संसार जानता है। अथवा ये श्री ऋषभदेवस्वामी स्वयं ही तीन लोक के नाथ हैं, इसलिए ये सब जानते हैं। इस तरह हम दोनों को विवाद करते एक वर्ष बीत गया है। इससे भगवान को वार्षिक तप करना पड़ा है। इस तरह पारिवारिक विरोध कभी कल्याणकारक नहीं होता। इसलिए यद्यपि यह बड़ा हठी है, फिर भी तुम्हारी दाक्षिण्यता से मैं इसे समझाता हूँ। क्योंकि किसी प्रकार से जब परिवार में विरोध उत्पन्न होता है, तब संबंधियों को संबंधी ही आपस में प्रतिबोध दे कर समझाते हैं। यह कह कर बायाँ हाथ दाहिने हाथ से कहने लगा कि "हे भाई! इस अवसर पर हमें विवाद करना उचित नहीं है। अभी तो स्वामी को केवलज्ञान उत्पत्ति के समय, तीर्थप्रवर्तन के समय और संघस्थापना के समय अपना ही काम है। उसमें