________________ (327) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध हुए। उनमें से जीवानन्द वैद्य जो धन सार्थवाह का जीव था, वह चौदह स्वप्नसूचित माता की कोख में उत्पन्न हुआ। जन्मने के बाद माता-पिता ने उसका नाम वज्रनाभ रखा। यह जीव भविष्य में ऋषभदेव होने वाला है, पर अभी चक्रवर्ती के रूप में उत्पन्न हुआ है। दूसरा राजा का पुत्र महीधर का जीव बाहु नामक राजा हुआ। तीसरा मंत्रीपुत्र सुबाहु नामक हुआ। चौथा सेठ का पुत्र गुणाकर का जीव पीठ नामक हुआ। पाँचवाँ सार्थवाह के पुत्र पूर्णभद्र का जीव महापीठ नामक हुआ। ये पाँचों भाई के रूप में उत्पन्न हुए। छठा केशव का जीव जो अनामिका का जीव है, वह अन्य किसी राजा के घर पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। वह वज्रनाभ को अत्यन्त प्रिय था, इसलिए भविष्य में उसका सारथी हुआ। ये छहों मित्र सुखपूर्वक रहते थे। ____ वज्रसेन राजा तीर्थंकर होने वाले थे। उन्होंने लोकांतिक देवों के वचन से जागृत हो कर, सांवत्सरिक दान दे कर वज्रनाभ नामक पुत्र को राज्य दे कर दीक्षा ली। फिर घनघाती कर्मों का क्षय कर के केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थंकर बने। वे विचरते हुए पुंडरीकिणी नगरी में आये। वनपालक ने वज्रनाभ को बधाई दी। उसी समय चक्ररत्न प्रकट होने की भी बधाई आयी। तब उसने सोचा कि पहले किसकी पूजा करूँ? फिर यह निश्चय किया कि तीर्थंकर को पूज लिया, तो सबको पूज लिया। इन तीन लोक के नाथ से बढ़ कर और कौन हो सकता है? यह सोच कर उसने केवलज्ञान महोत्सव किया। वह भगवान को वन्दन करने गया। फिर उसने चक्र की पूजा की। अनुक्रम से छह खंड जीत कर वह सुखपूर्वक राज करने लगा। एक बार पुनः वज्रसेन तीर्थंकर का वहाँ समवसरण लगा। वज्रनाभप्रमुख लोग उन्हें वन्दन करने आये। प्रभु की देशना सुन कर उन छहों ने दीक्षा ली। उनमें पहला वज्रनाभ चक्रवर्ती साधु हुआ। उसने चौदह पूर्वो का अभ्यास किया और अन्य पाँचों ने ग्यारह अंग पढ़े। उनमें से बाहु मुनि पाँच सौ साधुओं को आहार ला कर देते थे, सुबाहु पाँच सौ साधुओं के पाँव