________________ (326) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध तेल चाहिये। वह मेरे घर में तैयार है। पर रत्नकंबल और गोशीर्ष चन्दन भी चाहिये। ये दोनों मेरे पास नहीं है। इसलिए ये दोनों चीजें यदि कहीं से ला दो, तो हम साधु की वैयावच्च कर सकते हैं। . ___यह सुन कर उन छहों मित्रों ने ढाई लाख सुवर्णमुद्राएँ जमा की। फिर नगरसेठ के घर जा कर उसे सुवर्णमुद्राएँ दे कर उन्होंने कहा कि हमें एक रत्नकंबल और गोशीर्ष चन्दन चाहिये। तब सेठ ने पूछा कि तुम लोग इनका क्या करोगे? उत्तर में उन्होंने कहा कि हम साधु महाराज की वैयावच्च करेंगे। यह सुन कर सेठ ने विचार किया कि ये सब बालक होने पर भी कैसे धर्मबुद्धि है ! मैं इतना बड़ा वृद्ध हो गया हूँ, तो भी अब तक धर्म में कुछ समझता नहीं हूँ। यह सोच कर सेठ ने सुवर्णमुद्राएँ लिए बिना रत्नकंबल तथा गोशीर्ष चंदन उन्हें दे दिये। फिर स्वयं ने दीक्षा ले कर साधुधर्म का पालन कर अन्तकृत् केवली हो कर मोक्ष प्राप्त किया। अब वे छहों जन औषधि ले कर वन में गये। वहाँ मुनि काउस्सग्ग ध्यान में खड़े थे। उन्हें 'अनुजानीध्वं' कह कर चमड़े पर सुलाया। उनके शरीर पर लक्षपाक तेल से मालिश की। फिर चन्दन का लेप कर उन्हें रत्नकंबल में लपेट लिया। सबसे पहले त्वचा में रहे हुए संब कीड़े कंबल में आ गये। उन्हें गाय के मृत कलेवर में रख दिया फिर दूसरी बार तेल मसला, तब मांस में रहे हुए कीड़े बाहर आ गये। इसी प्रकार तीसरी बार भी पूर्वोक्त रीति से किया, तब हड्डी और मज्जा में से कीड़े बाहर आ गये। इसके बाद रोहिणी औषधि साधु के शरीर पर लगा कर उनका शरीर कंचनवर्णी कर दिया। फिर उन छहों ने रत्नकंबल का द्रव्य सात क्षेत्र में लगा कर दीक्षा ले कर निरतिचार चारित्रपालन किया। अन्त में काल कर दसवें भव में वे छहों जन बारहवें देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुए। छहों देव मित्र बने। ___ग्यारहवें भव में बारहवें देवलोक से च्यव कर जंबद्वीप के महाविदेहक्षेत्र की पुष्कलावती विजय में पुंडरीकिणी नगरी में वज्रसेन राजा.की धारिणी रानी की कोख में उन छह जनों में से पाँच जन अनुक्रम से पुत्ररूप में उत्पन्न