________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (293) देवकीजी ने पूर्वभव में अपनी सौत के सात रल चुरा लिये थे। इससे शोकमग्न और दिलगीर हो कर वह बहुत रुदन करने लगी, तब एक रत्न उसने लौटा दिया था। इस कर्म के योग से अनीकयशा, अनन्तसेन, विजयसेन, निहतारि, देवयशा और शत्रुसेन ये छह पुत्र देवकीजी के ले कर हरिणैगमेषीदेव ने सुलसा को दिये। श्रीकृष्ण वासुदेव का जन्म और उनके हाथों कंसवध ____ अब सात स्वप्नसूचित सातवाँ गर्भ पाँचवें देवलोक से च्यव कर देवकीजी की कोख में आ कर उत्पन्न हुआ। उस गर्भ का जन्म होते ही उसे ले जाने के लिए कंस के पहरेदार बैठे हुए थे। इसलिए देवकीजी ने वसुदेवजी से कहा कि यह सातवाँ गर्भ उत्तम है, इसलिए किसी भी उपाय से कदाचित् इसके लिए झूठ बोलना पड़े तो झूठ बोल कर भी हमें इस गर्भ की रक्षा करनी चाहिये। यह बात वसुदेवजी ने मान ली। वसुदेवजी का देवकीजी के साथ जब विवाह हुआ था, तब देवक राजा ने जो दहेज दिया था, उसमें गोकुल गाँव भी साथ में दिया था। उस गाँव में नंद नामक गोप और उसकी पत्नी यशोदा ये दोनों रहते थे। इसलिए ये भी दहेज में आ गये थे। ठीक समय पर देवकीजी ने पुत्र को जन्म दिया। वह वर्ण से काला था। इसलिए वसुदेवजी कृष्ण कृष्ण कहते हुए वहाँ से गुप्तरूप से निकल गये। उस समय कंस के पहरेदारों को भी नींद आ गयी। फिर वे दरवाजा खोल कर जब आगे बढ़े, तब उग्रसेन ने पूछा कि यह कौन है? तब वसुदेवजी ने कहा कि यह तेरा काष्ठ का पिंजरा तोड़ कर तुझे मुक्त करने वाला है। इतना कह कर वे आगे बढ़ गये। मार्ग में यमुना नदी ने भी मार्ग दिया। नदी पार कर वे गोकुल में गये और उन्होंने यशोदाजी को वह बालक सौंप दिया और उस समय यशोदाजी के जो पुत्री हुई थी, उसे ले कर देवकीजी को दे दिया। फिर जब पहरेदार नींद से जागे, तब उन्होंने पूछा कि क्या जन्मा? पुत्र या पुत्री? तब वसुदेवजी ने उन्हें पुत्री दे दी। कंस ने उसकी नाक काट कर पुनः वसुदेवजी को दे दी।' - अब कंस निश्चिन्त हो गया। वहाँ गोकुल में यशोदाजी वसुदेव के कहने से कृष्ण का पुत्र के समान पालन-पोषण करती थीं। कृष्ण भी सुखपूर्वक बढ़ रहे थे। 1. अन्य दर्शन वाले कहते हैं कि कन्या को कंस ने शिला पर पछाड़ कर मार डाला और वह मर कर बिजली हुई। पर यह बात मिथ्या है।