________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (301) शंखेश्वर पार्श्वनाथजी की मूर्ति का न्हवणजल अपनी सेना पर छाँटा। इससे उनकी सेना सुसज्जित हो गयी। अन्त में किसी भी तरह श्रीकृष्ण को जीतने का कोई भी उपाय जरासंध को नहीं सूझा, तब उसने अपना चक्र श्रीकृष्ण पर छोड़ा। इससे श्रीकृष्ण का कुछ नहीं बिगड़ा। उल्टे वह चक्र श्रीकृष्ण को तीन प्रदक्षिणा दे कर उनके हाथ में चला आया। फिर वही चक्र श्रीकृष्ण ने जरासंध पर छोड़ा। उसने जरासंध का मस्तक धड़ से अलग कर दिया। तब आकाश में देव दुंदुभी बजा कर बोले कि श्रीकृष्ण नौवें वासुदेव हुए। यह बात सुन कर जरासंध की समस्त सेना श्रीकृष्णजी की सेवा में उपस्थित हो गयी। फिर द्वारिका में आ कर श्रीकृष्ण सुखसमाधि में तीन खंड का राज्य संचालन करने लगे। ___ द्वारिका में बहत्तर कुल कोड़ि यादव रहते थे और द्वारिका के बाहर साठ कुल कोड़ि यादव रहते थे तथा महापुरुष समुद्रविजयादिक दस दशार्ह, बलदेवादिक पाँच महावीर याने महान योद्धा, उग्रसेनादिक सोलह हजार राजा, प्रद्युम्नादिक साढे तीन करोड़ कुमार, सांबादिक सोलह हजार दुर्दान्त कुमार, वीरसेन प्रमुख इक्कीस हजार वीर तथा महासेन प्रमुख छप्पन्न हजार बलवान राजा द्वारिका में रहते थे। रुक्मिणीप्रमुख बत्तीस हजार रानियाँ तथा अनंगसेनाप्रमुख अनेक गणिकाएँ द्वारिका में विद्यमान थीं। इतना बड़ा राज्य श्रीकृष्णजी का था। नेमिनाथ की बलप्रशंसा और बलपरीक्षा एक बार इन्द्र महाराज ने श्री नेमिनाथजी के बल की प्रशंसा की। उस समय सभा में से कोई एक मिथ्यात्वी देव इन्द्र महाराज के वचनों पर अविश्वास कर गिरनार पर्वत पर आया। वहाँ उसने सुरंधरा नामक नया नगर बसाया। वह देव मनुष्य का रूप धारण कर उस नगर में रहने लगा। फिर वह द्वारिका नगरी में रहने वाले लोगों को नित्य बहुत दुःख देने लगाउन्हें उपद्रव करने लगा। यह बात सुन कर महाअभिमानी अनादृष्टकुमार ने उस देव को पकड़ने के लिए गिरनार पर रहे हुए नगर पर आक्रमण किया। देव ने अपनी माया से उसे जीत लिया और उसे बाँध कर वह अपने नगर में ले गया। यह समाचार सुन कर समुद्रविजयजी उसके साथ युद्ध के लिए तैयार हुए। तब राम और कृष्ण इन दोनों भाइयों ने उन्हें रोका और वे दोनों लड़ने