________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (315) किया। याने कि सात सौ वर्ष तक साधुपने में रहे। इस तरह कुल एक हजार वर्ष की पूर्ण आयु भोग कर, शेष रहे हुए चार घाती कर्मों को खपा कर, इस अवसर्पिणी काल का दुष्षमसुषमा नामक चौथा आरा बहुत बीत गया और थोड़ा शेष रहा तब, उस समय में ग्रीष्म का चौथा महीना आठवाँ पखवाड़ा आषाढ़ सुदि अष्टमी के दिन गिरनार पर्वत पर मध्यरात्रि के समय, चित्रानक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, पाँच सौ छत्तीस साधुओं के साथ एक मास का चउविहार (पानी रहित) अनशन करते हुए पद्मासन में बैठे भगवान कालधर्म को प्राप्त हुए। यावत् सब दुःखों से रहित हुए। श्री पार्श्वनाथ भगवान से तिरासी हजार सात सौ पचास वर्ष पूर्व श्री नेमिनाथ भगवान हुए। याने कि श्री अरिष्टनेमि भगवान मोक्ष जाने के बाद चौरासी हजार नौ सौ अस्सीवें वर्ष में पुस्तक लिखी गयी- वाचना हुई। इति श्री नेमिनाथ चरितम्।। इक्कीसवें तीर्थंकर से श्री ऋषभदेव तक का अंतर . (21) इक्कीसवें श्री नमिनाथ भगवान के निर्वाण के बाद पाँच लाख वर्ष बीतने पर बाईसवें श्री नेमिनाथजी का निर्वाण हुआ। नेमिनाथजी से चौरासी हजार नौ सौ अस्सीवें वर्ष में पुस्तकलेखन हुआ। (20) बीसवें श्री मुनिसुव्रतस्वामी के मोक्षगमन के बाद छह लाख वर्ष बीतने पर इक्कीसवें श्री नमिनाथजी मोक्ष गये। उनके बाद पाँच लाख चौरासी हजार नौ सौ अस्सीवें वर्ष में पुस्तकलेखन हुआ। (19) उन्नीसवें श्री मल्लीनाथ मोक्ष जाने के चौवन लाख वर्ष बाद बीसवें श्री मुनिसुव्रतस्वामी मोक्ष गये। उनके बाद ग्यारह लाख चौरासी हजार नौ सौ अस्सीवें वर्ष में पुस्तकलेखन हुआ। (18) अठारहवें श्री अरनाथ मोक्ष जाने के एक हजार करोड़ वर्ष बाद उन्नीसवें श्री मल्लिनाथस्वामी मोक्ष गये। उनके बाद पैंसठ लाख चौरासी हजार नौ सौ अस्सीवें वर्ष में पुस्तकलेखन हुआ। (17) सतरहवें श्री कुंथुनाथ मोक्ष जाने के एक हजार करोड़ वर्ष कम एक पल्योपम का चौथा भाग, इतने वर्ष बाद अठारहवें श्री अरनाथ मोक्ष गये। उनके बाद एक