________________ (304) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध श्रीकृष्ण को झूले की तरह झुलाया। जैसे जुआरी दाँव हार जाता है, वैसे ही श्रीकृष्ण हार गये। यह देख कर बलभद्रजी बोले कि हे भाई! भ्रमर के भार से तरुशाखा नहीं झुकती। फिर श्रीकृष्ण तथा बलभद्रजी चिन्तातुर हो कर सोचने लगे कि यह चचेरा भाई हमसे अधिक बलवान है, इसलिए यदि यह हमारा राज्य ले लेगा तो कीड़ी-तीतर न्याय होगा। हमारे पास कुछ नहीं बचेगा। इतने में आकाशवाणी हुई कि अहो श्रीकृष्ण वासुदेव ! तुम चिन्ता मत करो। ये नेमीश्वर भगवान बालब्रह्मचारी बाइसवें तीर्थंकर हैं। ये अतुलबली हैं, पर तुम्हारे राज्य की इन्हें आवश्यकता नहीं है तथा स्त्री के साथ विवाह की भी इन्हें आवश्यकता नहीं है। ये तो बिना विवाह के ही संसार का त्याग कर के दीक्षा लेंगे। यह वचन सुन कर अत्यन्त हर्षित हो कर श्रीकृष्णजी अपने महल में गये। प्रभु को विवाह मंजूर कराने के लिए गोपियों का प्रयत्न एक दिन नेमिकुमार को निरागी जान कर शिवादेवीजी ने गोपियों को भलामण की कि तुम सब नेमीश्वर को वसन्तक्रीड़ा के लिए ले जाओ और जैसे बने, वैसे उन्हें सरागी कर के विवाह के लिए तैयार करो। तब सत्यभामाप्रमुख सोलह हजार गोपियाँ मिल कर श्री नेमीश्वर को सहस्राम्रवन में ले गयीं और वहाँ वे विचित्र वचन बोलने लगीं। एक ने कहा कि आप विवाह क्यों नहीं करते? आपके भाई श्रीकृष्ण ने सोलह हजार स्त्रियों के साथ विवाह किया है और आप एक के साथ भी विवाह नहीं करते, इसका क्या कारण है? दूसरी ने कहा कि भले पुरुष ! इस तरह अपनी जवानी व्यर्थ क्यों गंवाते हो? विवाह में आनन्द ही आनन्द है। तीसरी ने कहा कि विवाह किये बिना आप मोक्ष भी नहीं जा सकेंगे, क्योंकि ऋषभादिक सब तीर्थंकर विवाह कर के ही मोक्ष गये हैं। फिर आप क्या नये मोक्ष जाने वाले हुए हैं? फिर एक ने कहा कि ये विवाह कर के क्या करेंगे? ये तो वंठ (वांढा) होंगे। फिर सत्यभामा ने कहा कि यदि ये नहीं मानें तो इनका पल्लू पकड़ो। तब लक्ष्मणा ने कहा कि ये पूज्य हैं, इसलिए इनके साथ