________________ (302) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध . के लिए गये। देव ने उन्हें भी हरा कर बन्दी बना लिया। तब द्वारिका में हाहाकार मच गया। लोग कहने लगे कि राम और कृष्ण दोनों भाई हार गये हैं, तो अब हमारी रक्षा कौन करेगा? फिर सत्यभामाप्रमुख स्त्रियों ने श्री नेमिनाथजी से कहा कि आप जैसे अनन्तबली होते हुए दुश्मन आपके भाइयों को सताता है, इससे आपकी इज्जत घटती है। __तब नेमीश्वर भगवान ने अकेले रथ में बैठ कर अपना रथ दुश्मन के नगर के चारों ओर घुमाया। इससे कंगूरे सहित किला टूट गया। तब देव ने माया से सिंह बनाये। यह देख कर नेमिनाथ ने धनुष्य का टंकारव कर के उन सिंहों को भगा दिया। फिर देव ने चारों ओर अंधेरा कर दिया। तब भगवान ने उद्योत का बाण चला कर अंधकार का नाश किया। देव ने मेघवृष्टि की, तब भगवान ने पवन चला कर सब मेघ बिखेर दिये। देव ने अंगारों की वर्षा की, तब भगवान ने जलवर्षा कर के आग बुझा दी। फिर भगवान ने मोहबाण छोड़ा। इससे शत्रु मूर्छित हो कर गिर गया और महादुःखी हुआ। अन्त में इन्द्र महाराज ने आ कर विनती की कि हे महाराज! यह अज्ञानी देव आपका अनन्तबल क्या जाने? तब भगवान ने कृपा कर के उस देव को छोड़ दिया। फिर उस देव ने महामहोत्सव पूर्वक श्रीकृष्णादिक को द्वारिका में भेज दिया तथा स्वयं भगवान को नमन कर अपने स्थान पर गया। प्रभु का आयुधशाला में गमन और कृष्ण के साथ बल परीक्षा अनुक्रम से श्री नेमीश्वर भगवान तीन सौ वर्ष के हुए, पर वे विवाह नहीं कर रहे थे। तब शिवादेवीजी ने कहा कि हे पुत्र ! तुम विवाह कर के मेरे मनोरथ पूर्ण करो। भगवान ने कहा कि हे माताजी ! मेरे योग्य कोई कन्या होगी, तो मैं विवाह करूँगा। यह बात सुन कर माताजी चुप रहीं। अब श्री समुद्रविजय-कुल शृंगार, शिवादेवी-मात-मल्हार एक दंडनेमि, दूसरा दृढनेमि, तीसरा अतिनेमि, चौथा अरिष्टनेमि और पाँचवाँ रथनेमि इन पाँच कुमारों में से श्री अरिष्टनेमिकुमार लघुवय-समानवय वाले मित्र जोड़ कर मन के चाव से अनेक कुमारों से घिरे हुए खेलते-घूमते श्रीकृष्ण की