________________ (312) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध श्रीकृष्ण को बधाई दी। श्रीकृष्ण महाऋद्धि सहित वन्दन के लिए आये। राजीमती भी वन्दन के लिए आयी। अन्य भी बहुत से लोग वन्दनार्थ आये। भगवान की देशना सुन कर वरदत्त नामक राजा ने दो हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ली। फिर श्री कृष्णजी ने पूछा कि हे स्वामिन् ! आपके प्रति राजीमती का इतना मोह क्यों है? ____ तब भगवान ने कहा कि हे कृष्ण ! मेरा इसके साथ पूर्व में आठ भवों का संबंध है। पहले भव में मैं धन नामक राजा था। उस समय यह मेरी धनवती नामक रानी थी। दूसरे भव में हम दोनों पहले देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुए। तीसरे भव में देवलोक से च्यव कर मैं चित्रगति नामक विद्याधर राजा हुआ, तब यह रत्नवती नामक मेरी स्त्री हुई। चौथे भव में हम दोनों चौथे देवलोक में गये। पाँचवे भव में देवलोक से च्यव कर मैं अपराजित नामक राजा हुआ, तब यह प्रियमती नामक मेरी रानी हुई। छठे भव में हम दोनों ग्यारहवें देवलोक में देव हुए। सातवें भव में मैं शंख नामक राजा हुआ, तब यह सोमवती नामक मेरी रानी हुई। आठवें भव में हम दोनों अपराजित नामक अनुत्तर विमान में देवरूप में उत्पन्न हुए। वहाँ से च्यव कर नौवें भव में मैं नेमि हुआ और यह राजीमती हुई। इस तरह नौ भवों से संबंधित बात सुना कर भगवान ने वहाँ से विहार किया। श्रीकृष्णादिक तथा राजीमतीप्रमुख वृत्तान्त सुन कर द्वारिका गये। रथनेमि की भोगपिपासा और राजीमती का प्रतिबोध एक बार श्री नेमिनाथजी का गिरनार पर समवसरण लगा। उस समय राजीमती ने अन्य अनेक राजकन्याओं के साथ दीक्षा ली और रथनेमि ने भी दीक्षा ली। एक दिन गिरनार पर्वत पर भगवान को वन्दन करने के लिए जाते समय मार्ग में वर्षा होने से राजीमती के वस्त्र भीग गये। उन्हें सुखाने के लिए उसने एक गुफा में प्रवेश किया। उस गुफा में पहले से ही रथनेमि काउस्सग ध्यान में खड़े थे। राजीमती को इस बात की खबर नहीं थी। उसने गुफा में अपने भीगे हुए वस्त्र उतार कर सूखने के लिए फैला कर रखे। उस समय राजीमती को विवस्त्र देख कर रथनेमि का मन डाँवाडोल