________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (277) हुआ। इससे उसने अपना पूर्वभव देखा। तब उसे मालूम हुआ कि पूर्वभव में मैं हेमल नामक वामन कुलपुत्र था। मेरे स्वजन परिवारवाले मेरी हँसी उड़ाते थे। इससे मुझे चिन्तातुर देख कर मेरा सुप्रतिष्ठ नामक मित्र मुझे गुरु के पास ले गया। उनके पास मैंने श्रावकधर्म ग्रहण किया। पर अंतिम अवस्था में अपनी वामनी (छोटी) काया की निन्दा करते हुए मैंने नियाणा किया। उसके योग से मैं बड़ी काया वाला हाथी हुआ हूँ। ऐसा जान कर उस हाथी ने भगवान की कमल से पूजा की। हाथी की घटना सुन कर चंपानगरी का करकंडू राजा वहाँ आया, पर तब तक भगवान विहार कर गये थे। इससे राजा बड़ा दुःखी हुआ। तब इन्द्र ने वहाँ आ कर नौ हाथ की श्री पार्श्वनाथस्वामी की प्रतिमा प्रकट की। फिर राजा ने उसकी पूजा कर के वहाँ मंदिर बनवाया। इस तरह वहाँ कलिकुंड तीर्थ हुआ। हाथी मृत्यु के बाद व्यन्तरदेव हुआ और उस चैत्य का अधिष्ठायक बना। एक बार राजपुर के ईश्वर राजा को श्री पार्श्वनाथ भगवान को काउस्सग्ग में खड़े देख कर जातिस्मरणज्ञान हुआ। तब वह अपना पूर्वभव देख कर मूर्छित हुआ। फिर जब वह सावधान हुआ, तब मंत्री ने पूछा कि हे स्वामिन् ! आप बेहोश क्यों हो गये थे। तब राजा ने कहा कि मैंने मेरा पूर्वभव देखा। पूर्वभव में मैं वसन्तपुर नगर में एक कोढ़ी ब्राह्मण था। कोढ़रोग के दुःख के कारण मैं गंगानदी में डूब कर मरने के लिए तैयार हुआ था। उस समय एक चारणमुनि ने वहाँ आ कर मुझे प्रतिबोध दिया। फिर समकितवासना से मैं नित्य मंदिर में दर्शन के लिए जाने लगा। वहाँ मुझे पुष्कल नामक श्रावक ने देखा। मुझे देख कर वह कहने लगा कि अरे ! देखो, यह कोढ़ी मंदिर में क्यों जा रहा है? फिर उसने एक मुनि से पूछा कि महाराज ! यह कोढ़ी मंदिर में जाता है। इसे कोई दोष लगता है या नहीं? तब मुनि ने कहा कि दूर से नमन करने में कुछ भी दोष नहीं है। हे श्रावक ! यह ब्राह्मण अगले भव में राजपुर नगर में ईश्वर नामक राजा होगा और श्री पार्श्वनाथजी को