________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (275) लोग उसकी पूजा के लिए जा रहे हैं। यह सुन कर भगवान भी वहाँ गये। ___ वहाँ अवधिज्ञान से काष्ठ में जलते हुए सर्प को देख कर भगवान बोले कि अरे मूढ़ तपस्वी ! तू यह दयारहित वृथा कष्ट क्यों कर रहा है? दया के बिना तेरी यह मेहनत सब व्यर्थ है। तब क्रोध कर के कमठ तापस ने कहा कि अरे ! राजाओं के पुत्र तप-जप की क्या परीक्षा कर सकते हैं? तुम तो हाथी-घोड़ों की परीक्षा करो। तप की बात तो हम योगीपुरुष ही जानते हैं। इसमें तुम क्या समझते हो? ____ कमठ के ऐसे बोल सुन कर भगवान ने उस अग्निकुंड में से एक जलता काष्ठ बाहर निकाल कर उसे कुल्हाड़ी से तोड़ा। उसमें से अर्द्धदग्ध व्याकुल सर्प निकला। वह सर्प भगवान का मुख देखते हुए श्रद्धापूर्वक भगवान के मुख से नवकार मंत्र सुन कर तत्काल मर कर धरणेन्द्र नामक नागराज हुआ। अनेक प्रतों में ऐसा लिखा है कि भगवान ने अग्निकुंड में से जलता काष्ठ सेवक के हाथ से बाहर निकलवा कर कुल्हाड़ी मँगवा कर तुड़वाया तथा जलते साँप को नवकार मंत्र भी सेवक के मुख से सुनवाया। ऐसा स्पष्ट लिखा है। फिर वहाँ इकट्ठे हुए लोग कमठ से कहने लगे कि अरे अज्ञानी! तू अधर्म कर रहा है। जीवों की हत्या कर रहा है। ऐसा अपना अवर्णवाद सुन कर कमठ बहुत लज्जित हुआ। भगवान के चले जाने के बाद कमठ मानभ्रष्ट हो कर वहाँ से अन्यत्र चला गया। फिर बहुत काल तक विशेषरूप से अज्ञान तप कर के मरने के बाद भवनपति निकाय में मेघमाली नामक देव हुआ। श्री पार्श्वनाथ प्रभु की दीक्षा ... एक बार वसन्त ऋतु में भगवान अपनी रानी के साथ वनक्रीड़ा करने गये। वहाँ एक सुन्दर प्रासाद में ठहरे। उस प्रासाद में चित्रित श्री नेमीश्वर भगवान की बारात से संबंधित चित्र का अवलोकन किया। उस चित्र में राजीमती का त्याग कर नेमीनाथ के दीक्षा-ग्रहण का दृश्य चित्रित था। वह