________________ (288) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध नहीं मिला। तो भी उसे मन में खेद नहीं हुआ। उल्टे वह पश्चात्ताप करने लगा कि अरे! देखो तो सही। मैं कैसा भाग्यहीन हूँ कि ऐसे मुनियों की वैयावच्च करने में भी मुझे अन्तराय हो रहा है। अन्त में उसे पानी मिला। पानी ले कर वह साधु के पास आया। तब उस रुग्ण साधु ने गुस्से में आ कर लात मार कर वह सब पानी गिरा दिया। फिर वह कहने लगा कि अरे मूर्ख! इतनी देर से क्यों आया? ऐसा कहा तो भी नन्दीषेण ने उस पर क्रोध नहीं किया। फिर वह उस साधु को कंधे पर बिठा कर गाँव में ले चला। तब उस साधु ने देवमाया से उस पर अत्यन्त दुर्गंधित विष्टा करना शुरु किया। इससे नन्दीषेण का सम्पूर्ण शरीर मल से भर गया। तो भी नन्दीषेण को किसी प्रकार का द्वेषभाव नहीं हुआ। उसका ऐसा धैर्य देख कर देव सन्तुष्ट हुआ और उसे वन्दन कर देवलोक में अपने स्थान पर गया। इस तरह नन्दीषेण ने बारह हजार वर्ष तक चारित्र का पालन किया। अनेक ग्रंथों में पचपन हजार वर्ष तक चारित्रपालन किया ऐसा लिखा है। अन्त में नन्दीषेण मुनि ने अनशन किया। उस समय कोई चक्रवर्ती उसे वन्दन करने आया। तब चक्रवर्ती की पटरानी को देख कर उसने नियाणा किया कि मैं परभव में स्त्रीवल्लभ होऊँ। फिर वहाँ से काल कर वह देवलोक में गया। वहाँ की आयु पूरी कर उसने वसुदेव के रूप में जन्म लिया। . ___पूर्वजन्म में किये हुए नियाणे के प्रभाव से उसे कामदेव जैसा रूप मिला। वसुदेवजी जब शौरीपुर नगर में घूमते, तब नगर की स्त्रियाँ अपने घर खुले छोड़ कर तथा अन्य सब कामकाज छोड़ कर उनके रूप से मोहित हो कर उनके पीछे घूमती थीं और अपने पति का कहा भी नहीं मानती थीं। इससे किसी किसी के घर में चोर घुस जाते और घर लूट कर चले जाते। यह देख कर नगर में रहने वाले सब लोगों ने समुद्रविजय राजा के पास जा कर विनती की कि गाँव की सब स्त्रियाँ अपनेअपने घर सूने छोड़ कर वसुदेवकुमार के पीछे घूमती हैं। इसलिए यदि आप वसुदवजी को नहीं रोकें, तो हमें अन्यत्र कहीं रहने के लिए जगह दीजिये। यह सुन कर समुद्रविजय राजा ने कहा कि हे पंचो! आप जैसा कहते हैं, वैसा ही मैं करूँगा। आप लोग सुखपूर्वक अपने अपने घर जाइये और सुख-समाधि में रहिये। यह कह कर महाजनों को बिदा किया। थोड़ी देर बाद वसुदेवजी भी समुद्रविजयजी के पाँव छूने आये। तब वसुदेवजी को पास में बिठा कर समुद्रविजयजी ने कहा कि हे भाई! आजकल शरीर से तू बहुत दुबला-पतला नजर आता है। मुझे लगता है कि तू जहाँ-तहाँ बहुत भटकता