________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (281) वर्ष के बाद कोई मुनि सिद्ध हुआ याने तीन वर्ष के बाद मोक्षमार्ग चला। उस काल में उस समय में श्री पार्श्वनाथ पुरुषादानी तीस वर्ष तक गृहवास में रहे, तिरासी दिन छद्मस्थ अवस्था में रहे तथा तिरासी दिन कम सत्तर वर्ष तक केवलपर्याय में रहे। परिपूर्ण सत्तर वर्ष तक साधुत्व का पालन किया। कुल मिला कर एक सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर, शेष रहे हुए चार कर्म खपा कर, इस अवसर्पिणी काल का दुःखमसुखमा नामक चौथा आरा बहुत बीत गया और स्वल्प रहा, तब उस अवसर में वर्षा का पहला महीना दूसरा पखवाड़ा याने श्रावण सुदि आठम के दिन समेतशिखर पर्वत पर मासखमण के चौविहार (पानीरहित) तप में अनशन किये हुए शैलेशी अवस्था में योगसंवरण कर तैंतीस अन्य साधु और चौंतीसवें स्वयं श्री पार्श्वनाथ, विशाखानक्षत्र में चन्द्रमा का योग होने पर मध्यरात्रि के समय में लम्बे हाथ कर के काउस्सग्ग में खड़े खड़े कालप्राप्त हुए- निर्वाण को प्राप्त हुए। सब दुःख से रहित हुए। विशेष बात श्री पार्श्वनाथ चरित्र से जान लेना। श्री पार्श्वनाथस्वामी मोक्ष जाने के बारह सौ तीस वर्ष बाद श्री कल्पसूत्र पुस्तक पर लिखा गया, क्योंकि श्री पार्श्वनाथ मोक्ष जाने के ढाई सौ वर्ष बाद श्री महावीरस्वामी मोक्ष गये। उनके नौ सौ अस्सी वर्ष बाद श्री कल्पसूत्र पुस्तकारूढ़ हुआ। इति श्री पार्श्वनाथ चरित्र। श्री नेमिनाथ भगवान का जन्म ___ पश्चानुपूर्वी से बाईसवें श्री नेमिनाथस्वामी का चरित्र कहते हैं- उस काल में उस समय में अरिहन्त श्री अरिष्टनेमि के पाँच कल्याणक चित्रानक्षत्र में हुए। एक चित्रानक्षत्र में उनका देवलोक से च्यवन हुआ, दूसरा चित्रानक्षत्र में जन्म हुआ, तीसरा चित्रानक्षत्र में दीक्षा ली, चौथा चित्रानक्षत्र में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और पाँचवाँ चित्रानक्षत्र में वे मोक्ष गये। इति संक्षेप वाचना। अब विशेष वाचना कहते हैं- उस काल में उस समय में श्री नेमिनाथस्वामी वर्षाकाल का चौथा महीना, सातवाँ पक्ष याने कार्तिक वदि बारस के दिन अपराजित नामक महाविमान जहाँ बत्तीस सागरोपम की आयु