________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (271) लिए गये। फिर चारित्रपालन करते हुए मृत्यु के बाद उन्होंने शुभगति प्राप्त की। . ____ अब मरुभूति का जीव वह हाथी एक दिन गरमी के दिनों में प्यास से पीड़ित होने से मध्याह्न के समय पानी पीने के लिए तालाब पर गया। वहाँ कीचड़ में फँस गया। उस समय कमठ का जीव कूर्कट सर्प भी प्यास से पीड़ित होने के कारण उड़ते-उड़ते वहाँ आया। पानी पी कर जब उसने हाथी को देखा, तब पूर्वभर के बैर के कारण हाथी पर चढ़ कर उसके सिर पर उसने डंक मारा। इससे उसी समय हाथी के शरीर में जहर फैल गया। श्रावकधर्म का पालन करने के कारण वह शुभध्यान में मरा। यह दूसरा भव जानना। तीसरे भव में हाथी वहाँ से मर कर आठवें देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुआ और हाथी के गिरने से वह सर्प भी उसके नीचे दब कर मर गया। हाथीहत्या के पाप से वह पाँचवी नरक में नारकी के रूप में उत्पन्न हुआ। यह तीसरा भव जानना। चौथे भव में मरुभूति का जीव आठवें देवलोक से च्यव कर जंबूद्वीप के पर्व महाविदेहक्षेत्र में सकच्छ नामक विजय के वैताढ्य पर्वत की दक्षिणश्रेणी में तिलवती नगरी में विद्युत्गति राजा की कनकवती नामक स्त्री की कोख से पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम किरणवेग रखा गया। अनुक्रम से युवावस्था में सुरूपा नामक स्त्री से उसका विवाह हुआ। बाद में किरणवेग राजा भी बना। एक दिन रानी के साथ सुखोपभोग करते हुए झरोखे में बैठे-बैठे संध्या फूली देख कर उसे वैराग्य हुआ। फिर उसने दीक्षा ग्रहण की। एक बार वैताढ्य पर्वत के हेमशैल पर मुनि किरणवेग काउस्सग्ग में खड़े थे। उस समय कमठ का जीव पाँचवीं नरक से निकल कर वहाँ सर्प के रूप में उत्पन्न हुआ था। उसने मुनि को डंक दिया। इससे मुनि का देहान्त हो गया। यह चौथा भव जानना। पाँचवें भव में मुनि बारहवें देवलोक में देव बने और सर्प मृत्यु के बाद पाँचवीं नरक में गया। यह पाँचवाँ भव जानना। ' छठे भव में मरुभूति का जीव बारहवें देवलोक से च्यव कर जंबूद्वीप