________________ (264) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध उत्कृष्टी सम्पदा हुई। भगवान को तेरह सौ अवधिज्ञानी साधुओं की और सात सौ सम्पूर्ण केवलज्ञान और केवलदर्शन के धारकों की उत्कृष्टी सम्पदा हई। ___भगवान को देवों की ऋद्धि बना सकने में समर्थ ऐसे सात सौ वैक्रियलब्धिधारक मुनियों की उत्कृष्टी सम्पदा हुई। उन्हें ढाई द्वीप और दो समुद्र में रहने वाले संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्ता जीवों के मन के भाव जानने वाले पाँच सौ विपुलमति मनःपर्यवज्ञानी साधुओं की उत्कृष्टी सम्पदा हुई तथा देव और मनुष्यों की पर्षदा में बैठ कर वाद में किसी से पराजित न हों ऐसे चार सौ वादियों की उत्कृष्टी सम्पदा हुई। श्री महावीर के अंते याने समीप और वासी याने रहने वाले ऐसे अन्तेवासी सात सौ शिष्य उत्कृष्ट मोक्ष गये। ये सब भगवान के स्वहस्तदीक्षित जानना तथा चौदह सौ साध्वियाँ उत्कृष्टी मोक्ष गयीं। वे भी भगवान की हस्तदीक्षित जानना। श्री महावीर के आगामी भव में मोक्ष जाने वाले जिनकी गति का आयुष्य भला- शुभ है, ऐसे उत्कृष्ट आठ सौ साधु विजयादि पाँच अनुत्तर विमानों में गये। . दो प्रकार की मोक्ष मर्यादा श्रमण भगवान महावीरस्वामी के दो प्रकार की अन्तकृत् भूमि याने मुक्तिमार्ग की मर्यादा हुई। वह इस प्रकार है- भव याने संसार। इसका अन्त करने की भूमिका याने मर्यादा अथवा कर्म का अन्त करने की मर्यादा अन्तकृत् भूमि है। यह मर्यादा दो प्रकार की हुई- एक युगान्तकृत् भूमि और दूसरी पर्यायान्तकृत् भूमि। इसमें प्रथम युग याने कालमान विशेष। अनुक्रम से गुरु-शिष्य-प्रशिष्यादिरूप पुरुषों के अनुसार कालमान जानना। ___ यहाँ श्री वीर भगवान से तीन पुरुषों के पाट तक के काल तक कर्म का अन्त हुआ याने अन्य बहुत जीवों ने कर्म खपाये। उन श्री वीर भगवान के पाट से श्री जंबूस्वामी तक मोक्ष मार्ग चला। उसमें एक तो श्री वीर भगवान स्वयं, दूसरे उनके पाट पर उनके शिष्य श्री सुधर्मास्वामी और