________________ (256) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध चन्दनबाला ने भी भगवान की देशना सुन कर प्रतिबोध प्राप्त कर महा महोत्सव सहित भगवान के पास दीक्षा ली। उसके पश्चात् अन्य भी अनेक लोगों ने दीक्षा ली। बहुत श्रावक हुए और श्राविकाएँ भी बहुत हुईं। इस तरह चार प्रकार के संघ की स्थापना हुई। गौतमस्वामी की अष्टापद तीर्थ की यात्रा व 1503 तापसों की दीक्षा गौतमस्वामी का रूप उत्कृष्ट था। उनके प्रथम संहनन और प्रथम संस्थान था। वे छट्ठ-अट्ठमादिक तपश्चर्या करते हुए और धर्मदेशना देते हुए विचरते थे। वे चार ज्ञानवन्त, चौदह पूर्वधारी और श्रुत केवली बने। उन्हें तेजोलेश्यादिक अट्ठाईस लब्धियाँ प्राप्त थीं। वे जिसे दीक्षा देते, उसे केवलज्ञान उत्पन्न होता था, पर उन्हें भगवान पर स्नेह बहुत था, इसलिए केवलज्ञान होता नहीं था। तब वे सोचने लगे कि मुझे केवलज्ञान प्राप्त होगा या नहीं? उनका ऐसा चिन्तन देख कर श्री वीर भगवान ने देशना में यह कहा कि जो अपनी लब्धि से अष्टापद पर्वत पर चढ़ कर चौबीस तीर्थंकरों की वन्दना करता है, वह जीव उसी भव में मोक्ष जाता है। . ऐसी वीरवाणी सुन कर श्री गौतमस्वामी सूर्य की किरण का अवलंबन ले कर अपनी लब्धि से बत्तीस कोस ऊँचे और आठ सीढ़ियों वाले अष्टापद पर्वत पर चढ़ गये। वहाँ चौबीस जिनों को वन्दन किया और 'जगचिन्तामणि' स्तवन बनाया। वहाँ श्री वयरस्वामी का जीव तिर्यग्नुंभक नामक सामानिक देव, उसे पुंडरीकाध्ययन से प्रतिबोध दे कर वे नीचे उतरने लगे। तब पन्द्रह सौ तीन तापसों ने जो चौथ, छट्ठ और अट्ठम तप के पारणे में कन्दमूलफलादिक का भोजन करते थे और इस तरह जिन्हें बारह महीने हो गये थे, गौतमस्वामी को नीचे उतरते देखा। तब उन्होंने सोचा कि अपन इनके शिष्य बन जायें, तो अष्टापद पर जा कर महादेव को वन्दन कर सकेंगे। यह सोच कर वे उठे और श्री गौतमजी के पाँव पड़े। गौतमजी ने उन्हें प्रतिबोध दे कर दीक्षा दी। फिर वहीं खड़े रह कर सब तापसों को अपने लब्धिबल से ऊपर चढ़ा कर और देववन्दन करवा कर पुनः नीचे उतारा।