________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (261) देखा। इसलिए मेरे इस इकतरफा स्नेह को धिक्कार हो। अरे! इस मोहराजा का कैसा माहात्म्य है कि मुझ जैसे को भी जब यह इतनी पीड़ा दे रहा है, तो फिर अन्य जीव तो किस गिनती में हैं? अरे! मैने राग के वश हो कर यह नहीं सोचा कि ये श्री वीरप्रभु तो निरागी और निःस्नेही थे। फिर मेरा इन पर राग करना तो व्यर्थ क्लेशकारक ही जानना चाहिये इन निर्मोही को किसका मोह हो सकता है? अर्थात् इन्हें किसी का कुछ भी मोह नहीं होता। और फिर हे जीव ! तू कौन है और वे कौन हैं? यदि निश्चय दृष्टि से विचार किया जाये, तो श्री वीर और मैं कोई भिन्न नहीं हैं। क्योंकि यह आत्मा तो एक ही ज्ञान-दर्शन-चारित्र-मय शाश्वत है और अन्य सब भाव अशाश्वत है। मैं अकेला हूँ। मेरा अन्य कोई स्नेही नहीं है। संसार में कोई किसी का नहीं है। इस प्रकार समभावना भाते हुए श्री गौतमस्वामी को केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। इन्द्रादिक देवों ने प्रभातकाल में केवलज्ञान का महोत्सव सम्पन्न किया। ___ यहाँ कवि कहता है कि श्री गौतमस्वामी ने अहंकार से प्रतिबोध प्राप्त किया, राग से गुरुभक्ति की तथा विषाद में केवलज्ञान प्राप्त किया। यह आश्चर्य की बात है। गौतमस्वामी ने सुधर्मास्वामी को दीर्घायु जान कर पाट सौंपा। फिर बारह वर्ष तक केवल पर्याय पाल कर कुल बानवे वर्ष की आयु पूर्ण कर श्री गौतमस्वामी मोक्ष पहुँचे। गौतमस्वामी जिसे दीक्षा देते थे, वह उसी भव में मोक्ष जाता था। यह उनका महान अतिशय था। दीपमालिका पर्व की उत्पत्ति ____जिस रात्रि में भगवान मोक्ष गये, उस रात्रि में भगवान के मामा चेटक महाराज के मित्र अठारह देशों के राजा नौ मल्लकी जाति में उत्पन्न और नौ लिच्छवी जाति में उत्पन्न, काशी-कौशलादिक देशों के मालिक, गण याने परिवार के स्वामी ऐसे राजा उन्हें मिलने आये थे। वे सब अमावस्या के दिन