________________ (260) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध बुलायेगा? हा ! हा! हे वीर ! हे वीर ! यह आपने क्या किया, जो ऐसे समय में मुझे दूर कर दिया? लौकिकता भी नहीं रखी। क्या मैं बालक की तरह आड़े आ कर आपका पल्ला पकड़ लेता? क्या मैं केवलज्ञान का भाग माँगता? क्या मोक्षमार्ग संकीर्ण हो जाता? क्या आपका भार बढ़ जाता, जो मुझे भरमा कर चले गये? __ हे वीर ! जिस समय में अपने दूर रहे हुए बालक को भी बुला कर अपने पास रखना चाहिये, ऐसे समय में उल्टे आपने मुझे दूर कर दिया। हे वीर ! क्या आपने मेरा आपके प्रति कृत्रिम स्नेह जाना था? हे वीर ! क्या मैं आपके लिए असुखकारी था, जो आप मुझे छोड़ गये? हे वीर ! आपने मुझे क्यों भुला दिया? हे वीर ! आपने आज मुझे महाविरहसागर में धकेल दिया। प्रभो ! आपके बिना मैं वियोगरूप दाह में जल गया। अब आपके बिना मेरा दुःख कौन दूर करेगा? _हे वीर ! अब समवसरण की शोभा समाप्त हो गयी। अब मुक्तिमार्ग का साथ छूट गया और अब जैसे जलंबिन मछली तड़पती है, वैसे ही आपके बिना चतुर्विध संघ तड़पता रहेगा। हे वीर ! आपके वचनरूप उपशम जल के अभाव में जिनशासनरूप फुलवारी, बाग-बगीचे आदि सब सूख जायेंगे। आपके बिना समतारूप केतकी सूख जायेगी। इसलिए हे वीर ! अब भव्य जीवों के मनरूप भ्रमर कहाँ जा कर गुंजारव करेंगे? ___ हे वीर ! हे गुणनिधान ! हे जिनशासननायक ! हे भव्यजीव सुखदायक! हे जिनशासन श्रृंगार ! हे करुणासागर ! आप मुझे तड़पता छोड़ कर सात राज दूर जा कर बस गये। हा! हा! वीर ! अब मैं किसके साथ संदेश भेजूं? __ इस तरह अनेक प्रकार से गौतमस्वामी प्रशस्त मोह के उदय से नाना प्रकार से दुःख प्रकट करते रहे। बार बार ऐसा करने से मोह के वश से वी! वी ! ये अक्षर उनके मुख में रह गये। तब गौतमस्वामी ने सोचा कि ये श्री वीतराग तो निःस्नेही ही होते हैं। इसलिए यह तो मेरा ही अपराध है। मैं ही मूर्ख बना, जो मैंने मोह के वश हो कर श्रुत का उपयोग लगा कर नहीं