________________ (254) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध 9. श्री अचलभ्राता गणधर फिर नौवें अचलभ्राता समवसरण में आये। भगवान ने उनसे कहा कि पुण्यपाप हैं या नहीं? ऐसा तुम्हें सन्देह है और वह सन्देह वेदपद का अर्थ विरुद्ध समझने के कारण है। वह वेदपद इस प्रकार है- पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यं..... इत्यादिक। (दूसरे गणधर के वेदपद के पाठ में इसका अर्थ स्पष्ट किया गया है। वहाँ से जान लेना।) इसलिए जीव पुण्य से सुख पाता है और पाप से दुःख पाता है। इस तरह पुण्य और पाप ये दोनों वेद में हैं। यह अर्थ सुन कर सन्देह का निवारण कर उन्होंने भी दीक्षा ग्रहण की। 10. श्री मेतार्य गणधर ___ दसवें मेतार्य भी प्रभु के पास आये। प्रभु ने उनसे कहा कि हे मेतार्य! परलोक है या नहीं?, यह तुम्हें सन्देह है। इनका सन्देह दूर करने के लिए वेद के पदों का जो अर्थ प्रथम गणधर को बताया था, वही यहाँ सब स्पष्ट किया। फिर- .. 'अस्ति परलोक इहलोकस्यान्यथानुपपत्तेस्त्वत् पूर्वजवत्।'- परलोक है। यदि न हो तो यह लोक भी कैसे कहा जा सकता है? इसलिए. तुम्हारे पूर्वजों की तरह परलोक भी है। जैसे तुम्हारे पूर्वज हैं, तो तुम भी हो। और जो पाप कर के मरता है, वह नरक में जाता है और धर्म करने वाला मोक्ष में जाता है। यह अर्थ सुन कर उन्होंने भी दीक्षा ली। 11. श्री प्रभास गणधर ____ अन्त में ग्यारहवें श्री प्रभास समवसरण में आये। भगवान ने उनसे कहा कि हे प्रभास! तुम्हें यह सन्देह है कि मोक्ष है या नहीं? वेदपद का अर्थ बराबर न जानने के कारण तुम्हें सन्देह है। वे वेदपद इस प्रकार हैं 'जरामर्यं वा एतत्सर्वं यदग्निहोत्रं'- अग्निहोत्रं याने जो अग्निहोत्र है, तत्सर्वं याने वह सब, जरामर्यं वा याने यावज्जीव करना और इस होम में जीव मरता है, सो यह पापरूप है। यह स्वर्ग का सुख देता है, पर इससे मोक्ष नहीं होता। क्योंकि यावज्जीव करने के लिए कहा है, इसलिए स्वर्ग में ही जाया जाता है। पर उसके बिना मोक्ष जाने का उपाय नहीं है। तो फिर मोक्ष कैसे हो? इसका विचार करते हुए मोक्ष नहीं है, ऐसा अर्थ तुम करते हो। इसलिए तुम्हें सन्देह है। पर वह अर्थ तुम जैसा करते हो, वैसा नहीं है। उसका अर्थ इस प्रकार है कि- अग्निहोत्र जो है, सो यावज्जीव सर्व भी है,