________________ (243) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध कथं मया महत्त्वं मे, रक्षणीयं पुरार्जितम्। प्रासादं कीलिकाहेतो- भक्तुं को नाम वाञ्छति।।१।। अब पूर्वोपार्जित महानता को मैं कैसे सुरक्षित रख सकूँगा? मैंने पूर्व में अनेक वादियों को जीता है। इससे मैं लोकप्रसिद्ध हुआ हूँ और पंडित कहलाता हूँ। अब मैं मेरी पंडिताई को बचाने का क्या उपाय करूँ कि जिससे मेरी प्रतिष्ठा लोगों में बनी रहे? यदि मैं इनके साथ वाद न करूँ, तो लोग क्या कहेंगे? वे पूछेगे कि वाद करने गये थे, फिर लौट क्यों आये? इसलिए यद्यपि मैंने मूर्खता की है, तो भी अब बिना वाद किये लौटना ठीक नहीं है। अब तो सिर्फ एक को ही जीतना शेष रहा है। थोड़े के लिए अब मुझे मेरा सब यश गँवाना नहीं चाहिये। एक खीले के लिए अपना पूरा प्रासाद तोड़ कर खीला निकालना कोई भी नहीं चाहता। ऐसा मूर्ख कोई नहीं होता। तथा सूत्रार्थी पुरुषो हारं, कस्बोटयितुमीहते। कः कामकलशस्यांशं, स्फोटयेत् ठिक्करी कृते।।१।। ऐसा कौन पुरुष होगा, जो सूत्र याने धागे के लिए हार तोड़ने की इच्छा * करे? याने कि धागे के टुकड़े के लिए कोई हार तोड़ना नहीं चाहता, वैसे ही इस एक को न हरा कर मेरा यशरूपी हार मुझे तोड़ना नहीं चाहिये। तथा कौन पुरुष ठीकरे को पाने के लिए मनोवांछित पूर्ण करने वाले कामकुंभ को फोड़ेगा? अर्थात् ठीकरे के लिए कोई भी कामकुंभ को नहीं फोड़ता। वैसे ही मैं भी इनके साथ वाद किये बिना ऐसे ही लौट जाऊँगा, तो कामकुंभ समान मेरा यशरूपी घट फोड़ डालने जैसा होगा। इससे मेरी गिनती मूों में होगी। इसलिए मुझे ऐसा नहीं करना चाहिये। तथा. भस्मने चन्दनं को वा, दहेद् दुष्प्राप्यमप्यथ। लोहार्थी को महाम्भोधौ, नौ भङ्गं कर्तुमिच्छति।।२।। - कौन बुद्धिमान पुरुष भस्म याने. राख के लिए दुष्प्राप्य-कठिनाई से प्राप्त होने वाले चन्दन को जलायेगा? याने कि भस्म के लिए मलयागिरि चन्दन को कोई नहीं जलाता। तथा ऐसा कौन मूर्ख होगा, जो लोहे के टुकड़े