________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (245) प्रभु के समवसरण में आयी हुई हरिणी सिंह के शावक (छौने) को स्पर्श करती है। याने कि सिंह और हरिण में आजन्म का बैर है, पर समवसरण में उनका बैर मिट जाता है। इस कारण से वे समवसरण में आपस में मिल कर इकट्ठे बैठे हैं। गाय अपने पुत्र की बुद्धि से बाघ के बालक को चाट रही है। याने कि बाघ और गाय में बैर है, तो भी यहाँ वह बैर मिट गया है। इसलिए वह बाघ के बच्चे के साथ बैठी हुई लाड़ कर रही है। बिल्ली स्नेहवश हो कर हंस के बच्चे को स्पर्श कर के बैठी है। याने कि बिल्ली भी बालहंस को मारती नहीं है। इसी प्रकार मोर और सर्प में आपस में बैर है, तो भी वे प्रभु के समवसरण में ऐसे हो कर बैठे हैं कि मोरनी साँप के साथ बैठी है। इस तरह यहाँ ऐसे जन्मजात बैर सब जीवों के मिट गये हैं। .. - भगवान का ऐसा वचनातिशय देख कर इन्द्रभूति विस्मित हो गये। इतने में भगवान बोले कि हे इन्द्रभूति ! गौतम गौत्रिय ! तुम भले आये। तुम सुख-समाधि में हो।स्वामी का ऐसा वचन सुन कर इन्द्रभूति मन में विचार करने लगे कि ये मेरा नाम और गोत्र भी जानते हैं? मैं पूर्व में कभी इनसे मिला तो नहीं हूँ, पर मेरा नाम तो संसार में प्रसिद्ध है। मेरा नाम कौन नहीं जानता? सब जानते ही हैं। मैं कोई सामान्य मनुष्य तो नहीं हूँ ? सूर्य कहाँ छिपा रहता है? पर इन्होंने मुझे मेरा नाम ले कर जो पुकारा है, इसका रहस्य मेरी समझ में आ गया है। इन्होंने मात्र मुझे भरमाने के लिए ही नाम ले कर बुलाया लगता है। पर मैं कोई ऐसा नासमझ (भोला) नहीं हूँ कि इनके मीठे वचनों से मोहित हो जाऊँ। मैं तो इन्हें तभी मानूँगा, जब ये मेरे मन में रहा हुआ यह सन्देह कि जीव है या नहीं? बता देंगे या मिटा देंगे। तभी मैं इन्हें वास्तव में सर्वज्ञ मानूँगा। यदि ऐसा नहीं होता, तो मैं यह समझ लूँगा कि मेरे साथ वाद में हार जाने के भय से मुझे प्रसन्न रखने के लिए ये मुझे मधुर वचन से बुला रहे हैं। ये अपने मन में सोचते होंगे कि मधुर वचनों के कारण मैं इनसे वाद नहीं करूंगा।