________________ (154) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध सर्वसुरासुरवन्द्यः, कारयिता सर्व धर्मकार्याणाम्। भूयात्रिजगच्चक्षुः, मङ्गलदस्ते सपुत्राय।।१।। फिर स्थापन की हुई सूर्यमूर्ति का विसर्जन करे। छठे दिन धर्मजागरण करे। ग्यारहवें दिन अशुचिकर्म निवर्त्तन करे। मिट्टी के पुराने बर्तन बाहर निकाल दे। नये वस्त्र पहने। बारहवाँ दिन आने पर अन्नविगयप्रमुख अशन, मधुरजलप्रमुख पेय, खारिक-खोपरा प्रमुख खादिम तथा लविंग-पानप्रमुख स्वादिम यह चार प्रकार का आहार राजा ने तैयार कराया। फिर सिद्धार्थ राजा ने अपने मित्रों को, ज्ञाति-बांधवों को, अपने पुत्र-पौत्रादिकों को, चाचा को, श्वसुरप्रमुख को, अपने दास-दासियों को, अपने गोत्रजों को, क्षत्रियों को, नगर के क्षत्रियों को तथा अन्य भी बड़े-बड़े लोगों को निमन्त्रण दिया। फिर भगवान को तथा त्रिशलाजी को स्नान करा कर घर में देवपूजा करा कर विघ्न निवारण के लिए कौतुक से काजल के टीले-टबके किये। मांगलिक के लिए सरसों, दही, दर्भ, चावल का तिलक मस्तक पर धारण किया। नये वस्त्र तथा अल्पभार वाले बहुमूल्य अलंकार धारण कर के भोजन के समय में सिद्धार्थ राजा भोजनमंडप में उपस्थित हुए। फिर आमंत्रित मित्रादिकों को अशन, पान, खादिम, स्वादिमादिक चार प्रकार का आहार करवाया। उसमें स्वादप्रधान आहार ऐसा था कि स्वाद लेते-लेते अशनादिक मोदकप्रमुख सब खाये जा सकें तथा कई गन्नाप्रमुख ऐसे पदार्थ भी थे कि थोड़ा खायें और अधिक फेंक दें तथा कई खजूरप्रमुख पदार्थ ऐसे थे कि उनका अधिक भाग खायें और थोड़ा भाग फेंक दें। ऐसा चार प्रकार का आहार सिद्धार्थ राजा ने साधर्मिक आदि लोगों को खिलाया। भोजन-विधि कहते हैं मंडपादि रचना मनोहर मंडप निपजाया, देखते दिल्ल हुलसाया। अनोपम दृश्य था जैसा, कहीं पर होय नहीं वैसा।।१।।