________________ ___श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (191) ____ इतने में सिद्धार्थ व्यन्तर वहाँ पहुँच गया। उसने कहा कि अरे यक्ष ! यह तूने क्या किया? क्या तुझे यह मालूम नहीं है कि ये राजा सिद्धार्थ के पुत्र हैं? ये महासमता के भंडार हैं? यदि इन्द्र महाराज को मालूम हो गया, तो वे तुझे यहाँ से भगा देंगे। यह सुन कर भगवान की शान्तमुद्रा देख कर यक्ष ने अपने अपराध की क्षमायाचना की और सम्यक्त्व प्राप्त किया। भगवान को रात के चार प्रहर तक जो कदर्थना हुई थी, उसके कारण काउस्सग्ग में ही पिछली रात को दो घड़ी तक नींद लग गयी। नींद में प्रभु ने दस स्वप्न देखे- 1. तालपिशाच का हनन किया, 2. उज्ज्वल कोकिल पक्षी और 3. पंचरंगी विचित्र कोकिल युगल को सेवा करते देखा, 4. दो फूलमालाएँ देखीं, 5. गायों का झुंड देखा, 6. पद्मसरोवर देखा, 7. समुद्र को भुजाओं से तैर कर पार किया, 8. सूर्य को ऊगते देखा, 9. मानुषोत्तर पर्वत को आँतों से वेष्टित देखा और 10 स्वयं ने मेरुपर्वतारोहण किया ऐसा देखा। ये दस स्वप्न देख कर भगवान प्रभात में जाग गये। उत्पल निमित्तज्ञकथित स्वप्नफल उस समय लोग यह सोचते थे कि वह साधु रात को मर गया होगा। इसलिए सुबह देखने के लिए मंदिर में आये। वहाँ भगवान की महिमा देख कर उन्होंने भगवान की पूजा की और वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने स्वामी की महिमा बहुत बढ़ाई। उस समय भगवान पार्श्वनाथ का श्रावक उत्पल नामक निमित्तज्ञ भी वहाँ पहुँच गया। उसने वन्दन कर प्रभु से कहा कि हे स्वामिन्! आपने पिछली रात में स्वप्न में तालपिशाच का हनन किया, इससे आप शीघ्र ही मोहपिशाच (मोहनीय कर्म) का हनन करेंगे। श्वेत कोकिलपक्षी देखा, इससे अक्षोभ हो कर शुक्लध्यान ध्यायेंगे। पंचरंगी विचित्र कोकिलपक्षी का युगल देखा, इससे आप द्वादशांगी की प्ररूपणा करेंगे। गायों का झुंड देखा, इससे आप अनुपम चतुर्विध संघ की स्थापना करेंगे। देवों से सेवित पद्मसरोवर देखा, इससे चार निकाय के देव आपकी सेवा करेंगे। मेरु पर्वत की चूलिका पर आप चढ़े, ऐसा देखा, इससे आप देवनिर्मित सिंहासन पर