________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (217) घीमेल कीड़ियाँ बना कर कटवाया। पाँचवीं बार बिच्छू बना कर प्रभु को डंक लगवाये। छठी बार साँप के रूप बना कर प्रभु को डॅसवाया। सातवीं बार नेवले के रूप बना कर मुख और नख से भगवान का शरीर-विदारण किया। आठवें उपसर्ग में चूहों के रूप बना कर शरीर कुतरवाया। नौवें में हाथी और हथिनी के रूप बना कर सूंड से ऊपर उछाला। दसवें में दाँत और पैरों से शरीरमर्दन करवाया याने कुचलवाया। ____ग्यारहवें में पिशाच के रूप बना कर अट्टाट्ट हास्य कर के भगवान को डराया। बारहवें में सिंह के रूप बना कर नख लगाये और शरीर-विदारण किया। तेरहवें में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के रूप बना कर विलाप करते हुए बोला कि हे पुत्र ! हम तेरे माता-पिता अब आ गये हैं, इसलिए तू दुःख मत देख। हमारे साथ आ जा। हम तुझे सुख प्रदान करेंगे। चौदहवें में तीक्ष्ण चोंचवाले पक्षियों के रूप बना कर भगवान के कान और मुख का मांस निकलवाया। पन्द्रहवें में चांडाल का रूप बना कर भगवान की तर्जना की। सोलहवें में लकड़ी के टुकड़े जला कर दोनों पैरों पर हाँडी रख कर खीर पकायी और भगवान को आग से जलाया। सतरहवें में प्रचंड वायु चला कर भगवान को ऊँचे उछाल कर पुनः नीचे जमीन पर पटक दिया। अठारहवें में कलिकाल वायु उत्पन्न कर उस वायु से भगवान को चक्र की तरह घुमाया। उन्नीसवें में हजार भार प्रमाण लोहे का गोला बना कर भगवान के मस्तक पर डाला, जिससे भगवान कमर तक (कई प्रतों के अनुसार घुटनों तक) जमीन में फँस गये। यहाँ भगवान की जगह यदि अन्य कोई चाहे जितना बलवान होता, तो भी उसका शरीर चूर्ण हो जाता। पर यह तो तीर्थंकर का शरीर है, इसलिए उसे कुछ भी नहीं हुआ। बीसवें उपसर्ग में रात के समय दिन कर के बताया और कहा कि हे देवार्य ! प्रभात हो गया है, इसलिए अब विहार कर के गोचरी जाइये। उस समय भगवान ने अवधिज्ञान से रात जान कर सोचा कि यह देवकृत चरित्र है। इसके बाद संगम ने देवों की ऋद्धि बता कर और देवांगनाओं के रूप बना कर हावभाव दिखा कर अनेक अनुकूल उपसर्ग किये। फिर कहा कि