________________ (220) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध हुआ था और उसने प्रभु की शरण ग्रहण की थी। यह अधिकार दस अच्छेरों में विस्तार से आ गया है, इसलिए यहाँ नहीं लिखा। इसके बाद अनुक्रम में चन्दनबाला ने प्रभु को पारणा करवाया है। भगवान ने कुछ कर्म शेष रहे जान कर कौशांबी नगरी में पौष वदि एकम के दिन अपनी इच्छा से ऐसा अभिग्रह लिया कि- 1. द्रव्य से सूप के कोने में उड़द बाकुले रखे हों, 2. क्षेत्र से एक पैर घर की देहली के भीतर और एक पैर बाहर रहा हो, 3. काल से सब भिक्षुक लोगों के भिक्षा माँग कर जाने के बाद और भाव से राजा की पुत्री हो और उसे दासत्व प्राप्त हुआ हो, 5. सिर मुंडित हो, 6. उसके पैरों में बेड़ियाँ लगी हों, 7. अट्ठम तप किया हो और रुदन करती बैठी हो, ऐसी स्त्री यदि दो प्रहर दिन होने पर मध्याह्न के बाद भिक्षा दे, तो पारणा करना। ऐसा अभिग्रह धारण कर श्री वीर भगवान गोचरी के लिए नित्य भ्रमण करने लगे, पर कहीं भी ऐसा योग नहीं बना। राजा के मंत्रीप्रमुख ने अनेक उपाय किये, पर किसी भी प्रकार से प्रभु का अभिग्रह पूरा नहीं हुआ। अन्त में कौशांबी के बाजार में बिके जाने के कारण दासत्व को प्राप्त चन्दनबाला के द्वारा प्रभु का अभिग्रह पूरा हुआ। वह चंपानगरी के दधिवाहन राजा और धारिणी रानी की पुत्री थी। उसके हाथों से उड़द बाकुले ग्रहण कर पाँच महीने और पच्चीस दिन के उपवास का प्रभु ने पारणा किया। देवों ने वहाँ पंचदिव्य प्रकट किये। वह घटना इस प्रकार है- चंपानगरी के दधिवाहन राजा की धारिणी रानी के वसुमती नामक पुत्री थी। उसका दूसरा नाम चन्दनबाला था। एक बार कौशांबी के शतानीक राजा ने राज्यविरोध के कारण आक्रमण कर के चंपानगरी को लूटा। उस समय दधिवाहन राजा भाग गया और धारिणी रानी तथा चन्दना ये दोनों शतानीक राजा के पायदल के एक सैनिक के हाथ लगी। उसने धारिणी से कहा कि मैं तुझे अपनी स्त्री बनाऊँगा। यह सुन कर धारिणी रानी जीभ चबा कर मर गयी। फिर उस सुभट ने सोचा कि कहीं यह लड़की भी मर न जाये, इसलिए उसे विश्वास दे कर कौशांबी नगरी के बाजार में उसे बेचने के लिए ले गया। वहाँ एक वेश्या उसे खरीदने लगी। तब चन्दना ने उससे पूछा कि तुम्हारा आचार क्या है? उत्तर में वेश्या ने कहा कि धनी-मानी उत्तम पुरुषों से प्रीति करना और मनमाना भोजन करना, यह