________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (227) वाले थे और कर्मरूप शत्रु को मारने में तत्पर होते हुए विचरते थे। उनके ज्ञान, दर्शन और चारित्र उत्कृष्ट थे। वे आदिरहित थे। उनके स्थान, विहार, पराक्रम, आर्जव, मार्दव, अल्प उपधि, क्षमा, निर्लोभता, गुप्ति, मनःप्रसन्नता आदि सब काम उत्कृष्ट थे। सच्चा संयम-तप पालन करने से उपचय किया हुआ फल निर्वाणमार्ग, उसके विषय में आत्मा को लगाते हुए वे विचरतें रहे। इस तरह भगवान को बारह वर्ष व्यतीत हुए। प्रभुकृत तप और पारणा की संख्या : अब भगवान ने बारह वर्ष में जो तप किया, उसकी संख्या और जो पारणे किये उनकी संख्या कहते हैं- एक संगमदेव के उपसर्ग में छहमासिक तप और उसका एक पारणा, दूसरा पाँच दिन न्यून छहमासिक तप और उसका एक पारणा, नौ बार चौमासिक तप किया, उसके नौ पारणे, दो तीनमासिक तप के दो पारणे, दो ढाई मासिक तप के दो पारणे, छह दो मासिक तप के छह पारणे, दो डेढ मासिक तप के दो पारणे, बारह एकमासिक तप के बारह पारणे, बहत्तर अर्द्धमासिक तप के बहत्तर पारणे, दो सौ उनतीस छट्ठ तप के दो सौ उनतीस पारणे (यह बेले की तपस्या करने में पन्द्रह महीने और आठ दिन तपस्या में गये।), भद्रप्रतिमा दिन दो, महाभद्रप्रतिमा दिन चार और सर्वतोभद्र प्रतिमा दिन दस इन तीन प्रतिमाओं के तीन पारणे और तप के सोलह दिन जानना तथा एक रात्रिकी प्रतिमा बारह के बारह पारणे, इस तरह सब तप के दिन जोड़ने से कुल ग्यारह वर्ष छह महीने पच्चीस दिन हुए। ये सब दिन निराहार चउविहार जानना। तपयंत्र में दो सौ उनतीस छ? तप बताये हैं। उनके पारणे दो सौ उनतीस हुए। उनमें से एक छ? का अंतिम पारणा केवली अवस्था में हुआ। शेष दो सौ अट्ठाइस पारणे लिखे हैं तथा बारह एक रात्रिकी प्रतिमा के स्थान पर बारह अट्ठमतप लिखने से कुल 4165 दिन चउविहार तप के हुए और 350 दिन प्रथम पारणासहित आहार के हुए। कुल मिला कर 4515 दिन भगवान छद्मस्थ रहे। इनके एक साल के 360 दिन के हिसाब से बारह वर्ष और साढ़े छह महीने हुए। इस तरह भगवान ने नित्य