________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (213) उन्नीसवें तीर्थंकर श्री मल्लीनाथजी की धारणा की थी। पुत्र हो जाने के बाद उन्होंने उद्यान में श्री मल्लीनाथजी का नया मंदिर बनवाया और वहाँ रोज पूजा करने लगे। जिस समय सेठ अपनी स्त्री के साथ पूजा करने के लिये गये, उस समय भगवान के सम्मुख इन्द्र महाराज बैठे हुए थे। उन्होंने भगवान की महिमा करने के लिए सेठ से कहा कि हे सेठ ! जिसकी तू पूजा करता है, वह मैं तुझे प्रत्यक्ष दिखाता हूँ। यह कह कर वे सेठ को भगवान के पास ले गये और उसे भगवान के पाँव लगाया। सेठ ने भी भावपूर्वक भगवान की पूजा कर के फिर श्री मल्लीनाथजी की पूजा की। इसके बाद आठवाँ चौमासा भगवान ने राजगृही नगरी में किया।।८।। वहाँ चार महीने तक चौमासी तप किया। फिर चौमासी तप का पारणा बाहर जा कर किया। हार प्रभु का अनार्य देश में विहार ___चौमासे के बाद प्रभु अनार्य देश में गये। वहाँ विचरते हुए भगवान ने बहुत कठिन उपसर्ग सहन किये और नौवाँ चौमासा भी अनार्य देश में ही व्यतीत किया।।९।। यह चौमासा चार मासिक तप सहित किया। वहाँ प्रभु को रहने के लिए जगह भी नहीं मिली। इसलिए वे विचरते ही रहे। चौमासे के बाद भी भगवान दो महीने तक अनार्य देश में ही तप सहित विचरे। वह भी आहाररहित दो मासिक तप हुआ। फिर अनार्य देश से विहार कर जब भगवान सिद्धार्थ गाँव से कूर्मगाँव जा रहे थे, तब मार्ग में एक तिल का पौधा खड़ा देख कर गोशालक ने भगवान से पूछा कि यह थंभ होगा या नहीं? ____भगवान ने कहा कि इस तिल के फूल सात हैं। उनके जीव मर कर एक फली में तिल के रूप में उत्पन्न होंगे। यह सुन कर गोशालक ने भगवान का वचन झूठा करने के लिए उस पौधे को उखाड़ कर फेंक दिया। तब निकट में रहे हए व्यन्तरदेव ने सोचा कि भगवान का वचन झठा न हो। इसलिए उसने जल बरसाया। फिर गाय के खुर से वह तिल का