________________ (214) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध झाड़ दब जाने के कारण धरती में जम गया और बरसात के योग से फिर खड़ा हो गया। भगवान कूर्मगाँव गये। वहाँ वेश्यायन नामक एक तापस था। वेश्यायन तापस की कथा उसका नाम वेश्यायन क्यों पड़ा? उसकी कथा कहते हैं राजगृही और चंपानगरी के मध्य में गूर्वरगाँव था। वहाँ कोशंबी नामक एक कुटुंबी रहता था। गूर्वरगाँव के पास एक और गाँव था। उस गाँव के बाहर किसी राजा की फौज ने डेरा डाला। इससे गाँव के सब लोग भाग गये। उस समय एक स्त्री अपने पुत्र के साथ भाग रही थी। उसे मार्ग में चोरों ने पकड़ लिया और वे उसे उठा ले गये। उसका बालक गूर्वरगाँव के बाहर पड़ा रहा। उसे कोशंबी कुटुंबी ने बाहर भटकते देख कर उठा लिया। उसके कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उसने उसे पुत्र के समान पाल-पोस कर बड़ा किया। उस बालक की माता को चोरों ने चंपानगरी में किसी वेश्या को बेच दिया। इस कारण से वह वेश्या का धंधा करने लगी। फिर अनुक्रम से वह लड़का जब बड़ा हुआ, तब एक दिन चंपानगरी में व्यापार के लिए गया। वहाँ उसकी माता जो वेश्या व्यवसाय करती थी, उसके साथ अनजान में वह भोग भोगने लगा। एक दिन उसकी कुलदेवी गाय और बछड़े का रूप बना कर रास्ते में बैठ गयी। इतने में वह लड़का भी वेश्या के घर जाने के लिए उस मार्ग से निकला। उसने बछड़े की पूँछ पर पाँव रखा। तब बछड़ा बोला कि देखो माताजी ! यह मेरी पूँछ पर पाँव रख कर जा रहा है, पर रास्ता देखता नहीं है। तब गाय बोली कि बेटे! तू इसका नाम मत ले। यह तो अपनी सगी माँ के साथ भोग करने से भी डरता नहीं है, तो तेरी क्या सुनेगा। यह बात सुन कर लड़का चौंक गया। फिर कुलदेवी ने पूरी हकीकत उसे बतायी। उसे सुन कर वह तापस बन गया। लोगों ने उसका नाम वेश्यायन रखा। वह झाड़ में औंधे मुँह लटक कर नीचे रखे हुए अग्निकुंड में तापने लगा। उसे तेजोलेश्या प्राप्त हुई। भगवान वहाँ से जा रहे थे। उनके पीछे गोशालक भी चल रहा था। उस समय वेश्यायन अपने जटाजूट में से जमीन पर गिरी हुई नँओं को उठा