________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (205) सेठ के घर बाँध गया। उनकी हड्डियाँ टूट गयी थीं, इस कारण से उन्होंने घास-चारे का त्याग कर दिया। अपने पुत्रसमान उन बैलों को दुःखी जान कर सेठ ने बड़े दुःख से उन्हें अनशन कराया और चारों प्रकार के आहार का पच्चक्खाण करवा कर नवकार मन्त्र सुनाया। इससे वे बैल शुभध्यान में मर कर नागकुमार देव बने। उन्होंने अवधिज्ञान से देखा, तब नाव में भगवान पर उपसर्ग हो रहा था। यह देख कर उन्होंने तुरन्त वह उपसर्ग दूर किया और भगवान के आगे नाटक-गीतगान कर के, पूजा-सत्कार कर के वे अपने स्थान पर गये। इति कंबल-संबल दृष्टान्त। पुष्प निमित्तिज्ञ और गोशालक का वृत्तान्त एक दिन भगवान ने विहार करते हुए गंगा नदी पार की। उस समय नदी की महीन बालू में प्रतिबिंबित पदचिह्नों की श्रेणी में चक्र, ध्वज, अंकुश प्रमुख लक्षण प्रकट हुए। इतने में वहाँ सामुद्रिक शास्त्र का जानकार एक पुष्प नामक. निमित्तज्ञ जा पहुँचा। उसने पदचिह्न देख कर मन में सोचा कि यह कोई चक्रवर्ती होने वाला जीव है। चक्रवर्ती को छोड़ कर ऐसे पैर अन्य के नहीं हो सकते। इस समय वह अकेला है, इसलिए मैं उसके पास जा कर उसकी सेवा करूँ। फिर वह चरणानुसार भगवान के पास जा पहुँचा। वहाँ भगवान को वस्त्ररहित अचेलक रूप में देख कर वह निराश हो गया। वह सोचने लगा कि मैं व्यर्थ ही सामुद्रिक शास्त्र पढ़ा हूँ। यदि ऐसे लक्षणों का स्वामी भिक्षुक रूप में अकेला है, तो मेरे ये ग्रंथ मिथ्या हैंपानी में डुबोने लायक हैं। यह सोच कर वह अपने ग्रंथ पानी में डुबोने लगा। इतने में इन्द्र महाराज ने यह वृत्तान्त जान लिया। वे तुरन्त वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने भगवान की सेवा बजायी। पुष्प निमित्तज्ञ को भगवान का स्वरूप समझाया और उसे शास्त्र जल में विसर्जन करने से रोका। फिर भगवान का गुणग्राम कर के वे अपने स्थान पर गये। पुष्प भी इन्द्र के पास से मणिकनकादिक धन प्राप्त कर हर्षित हो कर अपने घर गया। - भगवान ने परोपकारार्थ गंगा नदी पार कर विहार किया। दूसरे चौमासे में भगवान राजगृही नगरी में नालन्दा पाड़ा में किसी बुनकर की शाला में एक कोने में आज्ञा ले कर रहे और वहाँ प्रथम मासखमण किया।