________________ (210) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध दिया। वहाँ से विहार कर भगवान आवर्तगाँव में बलदेव के मंदिर में काउस्सग्ग में रहे। वहाँ गोशालक ने लड़कों को डराने के लिए मुख मरोड़ कर बताया। इससे सब लड़कों ने भयभीत हो कर अपने माता-पिता से कहा। तब उनके माता-पिता वहाँ जा कर कहने लगे कि इस शिष्य को क्या. मारना? इसके गुरु को ही मारो, जिससे यह अपने शिष्य को अच्छे रास्ते पर चलने का आदेश दे। यह कह कर जैसे ही वे भगवान को मारने के लिए तैयार हुए, वैसे ही बलदेव की मूर्ति ने हाथ में हल ले कर लोगों को डराया। इससे सब लोगों ने भगवान को नमस्कार किया। फिर वहाँ से विहार कर अनेक क्लिष्ट कर्मों की निर्जरा करने के लिए भगवान लाटदेश गये। वहाँ अनार्य लोगों ने बहुत उपद्रव किये। वे सब प्रभु ने शान्ति से सहन किये। . ___ वहाँ से पूरणकलश नामक अनार्य गाँव में जाते समय मार्ग में भगवान को दो चोर मिले। भगवान को देख कर अपशकुंन हुआ मान कर वे तलवार ले कर उन्हें मारने दौड़े। तब इन्द्र महाराज ने उन्हें वज्र से मार डाला। (कई प्रतों में ऐसा लिखा है कि इन्द्र महाराज ने उनके पैर स्तंभित कर दिये। इससे वे वृक्ष के समान वहीं खड़े रहे।) इस तरह उपसर्ग निवारण हुआ। ___ फिर भगवान चोरांगगाँव गये। वहाँ मंडप में धान्य पक रहा था। यह देख कर गोशालक नीचे झुक कर देखने लगा। तब लोगों ने उसे चोर समझ कर मारा। गोशालक क्रोधित हो कर बोला कि मेरे स्वामी के तपबल से तुम्हारा मंडप जल जाये। तब वैसा ही हुआ। फिर भगवान हरिवृक्ष के नीचे काउस्सग्ग में रहे। वहाँ किसी पथिक ने पहले भूमि जलायी थी। इससे गोशालक के पैर जले। तब वह वहाँ से भाग गया। फिर भगवान पाँचवें चौमासे में भद्रिका नगरी में रहे। वहाँ उन्होंने चौमासी तप किया।।५।। फिर पारणा कर के भगवान कुदिक सन्निवेश में गये। वहाँ उन्हें चोर जान कर लोगों ने पकड़ लिया। उस समय श्री पार्श्वनाथजी की विजया