________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (209) जागरण के दिन दरिद्र और स्थविर पाखंडिनियाँ नाच-गान कर रही थीं। गोशालक ने उनकी हँसी उड़ायी। इसलिए उन्होंने गोशालक को मारापीटा। फिर भगवान का शिष्य जान कर छोड़ दिया। वहाँ से विहार कर प्रभु श्रावस्ती नगरी जा कर काउस्सग्ग में रहे। वहाँ के पितृदत्त वणिक की स्त्री सुभद्रा के पुत्र जीवित नहीं रहते थे। उसे शिवदत्त निमित्तज्ञ ने समझाया कि मृतक पुत्र का मांस खीर में पका कर किसी भिक्षुक को खिलाने से तुम्हारे पुत्र जीवित रहेंगे। तब उस स्त्री ने पुनः मृतक पुत्र होने पर उसके मांस की खीर तैयार की। उसी समय गोशालक ने सिद्धार्थ व्यन्तर से पूछा कि आज मुझे कैसा भोजन मिलेगा। तब सिद्धार्थ ने कहा कि आज तुझे मनुष्य का मांस मिलेगा और वह तू खायेगा। .. फिर सिद्धार्थ का वचन झूठा करने के लिए गोशालक एक श्रावक वणिक के घर वहोरने गया। उसने अपने मन में सोचा कि वणिक के घर मांस होता ही नहीं है। यह जान कर उसने वहाँ खीर खायी। फिर लौट कर उसने सिद्धार्थ से कहा कि आज मैंने खीर खायी है। तब सिद्धार्थ ने कहा कि तूने मांस खाया है। तब गोशालक ने गले में उँगली डाल कर वमन किया। उसमें मांस के टुकड़े दिखाई दिये। तब क्रोधित हो कर गोशालक उस वणिक के घर गया, पर उस स्त्री ने शाप के भय से पहले से ही घर का दरवाजा बदल दिया था। इससे गोशालक को घर नहीं मिला। तब उसने कहा कि मेरे स्वामी के तप के प्रभाव से तुम्हारा मोहल्ला जल कर भस्म हो जाये। इससे मोहल्ला जल गया। ___वहाँ से विहार कर भगवान दरिद्रसन्निवेश के बाहर काउस्सग्ग में रहे। वहाँ पथिकों ने भगवान के पैरों के पास आग जलायी, तो भी भगवान किंचित् मात्र भी नहीं खिसके। भगवान के पैर जलते देख कर गोशालक भाग गया। - वहाँ से प्रभु गलगाँव जा कर वासुदेव के मंदिर में काउस्सग्ग में रहे। वहाँ गोशालक आँखें निकाल कर बालकों को डराने लगा। तब लोगों ने उसे मारा-पीटा और रोका। अन्त में भगवान का शिष्य जान कर छोड़