________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (193) कर भगवान की महिमा बनाये रखने के लिए उस निमित्तज्ञ की उँगली छेद डाली। इससे तृण नहीं टूटा और निमित्तज्ञ निराश हो गया। फिर सिद्धार्थ ने लोगों से कहा कि यह निमित्तज्ञ चोर है। यह कुछ भी पढ़ा नहीं है। इसने वीराघोष नामक कर्मकर का दस पल का काँसे का पात्र चुरा कर खजूर के पेड़ के नीचे गाड़ा है तथा यह इन्द्रशर्मा ब्राह्मण का बकरा मार कर खा गया है। उसकी हड्डियाँ इसके घर के पिछवाड़े बेर के झाड़ के नीचे इसने गाड़ी है तथा तीसरा दोष जो इसमें है, वह मैं नहीं कहूँगा। इसकी स्त्री ही बतायेगी। यह सुन कर सब बातें सत्य मान कर लोगों ने जा कर उसकी स्त्री से पूछा। तब उस स्त्री ने कहा कि यह पापिष्ट अपनी बहन के साथ भोग करता है। ... ऐसी अपनी निन्दा की बातें प्रसिद्ध होने से अहच्छन्दक बहुत लज्जित हुआ. और गाँव में तिरस्कृत हुआ। उसने भगवान के पास जा कर विनती की कि आप त्रिलोकपूज्य हैं, पर मैं तो यहीं सुखपूर्वक उदरभरण करते हुए रहता हूँ। तब अप्रीति हुई ऐसा जान कर भगवान ने वहाँ से विहार कर दिया। निर्भाग्य सोमदेव विप्र की कथा भगवान श्री महावीरस्वामी एक वर्ष और एक महीने तक इन्द्र द्वारा दिये गये देवदूष्य वस्त्रसहित रहे। फिर उसके बाद वस्त्ररहित अचेलक हो गये, पर अतिशय के योग से नग्न दीखते नहीं थे। अब वे वस्त्ररहित कैसे हुए? सो कहते हैं भगवान ने जब वार्षिकदान दिया था, उस समय सिद्धार्थ राजा का मित्र सोमदेव ब्राह्मण जो जन्मतः दरिद्री था, वह धनार्जन के लिए परदेश गया था, पर उसे कहीं भी धन नहीं मिला। जैसा गया था, वैसा ही खाली हाथ घर लौटा। वह एक कौड़ी भी प्राप्त नहीं कर सका। दरिद्र ही रहा। तब उसकी स्त्री ने उसकी बहुत निर्भर्त्सना की और कहा कि अरे अभागे ! श्री महावीरस्वामी ने जब वार्षिकदान दिया था, उस समय तू कहाँ मर गया था? तू जहाँ तहाँ ऐसा का ऐसा ही दरिद्री रहा। जैसे घड़ा जहाँ जाता है, वहाँ पानी से भरा जाता है तथा कपासिया जहाँ जाता है, वहाँ धुना जाता हैवैसे ही तू भी दरिद्री ही रहा। दारिद्र्य तेरा पीछा ही नहीं छोड़ता।