________________ (190) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध वे बाँट कर खा गये। फिर वह बैल भूख-प्यास से पीड़ित होता हुआ अकामनिर्जरा के कारण मृत्यु के बाद व्यन्तरदेवों में शूलपाणि यक्ष हुआ। उसने अवधिज्ञान से अपने पिछले जन्म का वृत्तान्त देखा, तब गाँव के लोगों पर रूठ कर उसने महामारी (मरकी) फैलायी। इससे अनेक मनुष्य और ढोर मरने लगे। ऐसी स्थिति हुई कि मुर्दे को कोई जलाने वाला न मिले। जो भी मरता, लोग उसे गाँव के बाहर फेंक आते। इससे वहाँ हड्डियों का ढेर लग गया। आने जाने वाले लोगों ने उस गाँव का नाम अस्थियाम रख दिया। फिर अनेक लोगों को मरते देख कर गाँव के लोगों ने मिल कर उसकी आराधना की। तब वह यक्ष प्रकट हो कर आकाशवाणी से बोला कि मैं बैल का जीव हूँ। तुमने मेरा धन खा लिया, पर मेरी कोई सेवा नहीं की। इस प्रकार तुमने मुझे कुमरण से मारा है, इसलिए मैं तुम पर कुपित हुआ हूँ। यदि तुम इन अस्थियों पर मेरे नाम का मंदिर बनवाओ और उसमें वृषभ के रूप में शुलशस्त्र हाथ में दे कर मेरी मूर्ति की स्थापना करो तथा मेरी पूजा करो, तो ही रोग मिटेगा तथा जीवित रहोगे, अन्यथा सब मर जाओगे। यह सुन कर लोगों ने मरणभय से मंदिर बनवा कर उसमें उसकी प्रतिमा स्थापन कर पूजा की। इससे महामारी दूर हो गई। वह यक्ष कैसा था? वह यक्ष महादुष्ट था। किसी को अपने मंदिर में रात को ठहरने नहीं देता था। इस कारण से उस मंदिर के पुजारी इन्द्रशर्मा विप्र ने भगवान को वहाँ रहने के लिए मना किया तथा अन्य लोगों ने भी बहुत रोका, पर भगवान रात भर काउस्सग्ग में वहीं रहे। तब यक्ष रूठ गया। वह संध्यासमय से ही उपसर्ग करने लगा। प्रभु को डराने के लिए सर्वप्रथम उसने अट्टाट्टहास्य किया। फिर हाथी का रूप बना कर प्रभु को उछाला, पिशाच का रूप बना कर छुरा निकाल कर डराया तथा सर्प बन कर भगवान को डंक मारा। ऐसे अनेक उपसर्ग किये, पर भगवान बिल्कुल क्षुभित नहीं हुए। इसके बाद मस्तक, कान, नासिका, आँख, दाँत, होंठ, पीठ और नाखून इन आठ स्थानों में विविध वेदना उत्पन्न की। अन्त में भगवान को अक्षोभ जान कर वह प्रतिबोधित हुआ और भगवान की भक्ति करने लगा।