________________ (188) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध कामी पुरुषों, स्त्रियों तथा भ्रों का उपसर्ग भगवान ने जब दीक्षा ली थी, तब इन्द्रादिकों ने सुगंधित बावना चन्दनादिक से भगवान के शरीर पर लेप किया था। उसकी सुगंध चार मास से अधिक समय तक बनी रहती है। उस सुगंध से भ्रमरादिक हजारों जीव मदोन्मत्त हो कर भगवान के अंगोपांगों को बेधने लगे और महाउपद्रव करने लगे। सुगंध में अन्धे बने हुए भौरे भी भगवान के अंगोपांगों को काटते थे। भगवान भ्रमरों का इतना भारी उपद्रव होने पर भी वज्रऋषभनाराच संहनन के प्रभाव से मेरु के समान अडिग थे। अनजान कामी पुरुष सुगंध पर मोहित हो कर सुगंध पाने के लिए भगवान के शरीर से अपना शरीर घिसने लगे तथा कामी स्त्रियाँ उन्हें आलिंगन देने लगीं। इस तरह लोग भगवान से सुगंध माँगने लगे। यह उपसर्ग चार महीने से अधिक समय तक रहा, तो भी भगवान डिगे नहीं। वे मेरु के समान अडोल-अकंप रहे। अब भगवान वहाँ से विहार करते करते मोराक सन्निवेश में दूइज्जन्त तापस के आश्रम में पहुँचे। दुइज्जन्त भगवान के पिता सिद्धार्थ राजा का मित्र था और आश्रम का कुलपति था। वह भगवान को देख कर उनकी अगवानी के लिए गया। भगवान भी पूर्व परिचयाभ्यास के कारण नजदीक ही उससे हाथ पसार कर मिले। फिर उसके आग्रह से नीरागचित्त हो कर वे वहाँ एक रात रहे। प्रभात में जब वे विहार करने लगे, तब वह तापस उन्हें बिदा करने के लिए उनके साथ चला। फिर उसने भगवान से विनती की कि आठ मास अन्यत्र विहार कर चातुर्मास के लिए आप मेरे आश्रम में पधारें। उसके बहुत आग्रहं करने पर भगवान ने देशकाल का विचार कर कहा कि ऐसा ही हो। यह कह कर चार ज्ञान सहित भगवान विहार के लिए आगे बढ़ गये। फिर चातुर्मास आने पर भगवान उस तापस के आश्रम में रहने के लिए आये। कुलपति ने भगवान को रहने के लिए घास-फूस की झोंपड़ी दी। भगवान वहाँ रहे। दैवयोग से वर्षा नहीं हुई, तब गाँव के ग़ायप्रमुख भूखे ढोर आश्रम में आ कर झोंपड़ी की घास खाने लगे। उस समय अन्य