________________ (186) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध कर अट्ठाई महोत्सव किया। इसके बाद वे सब अपने-अपने स्थान पर गये। भगवान ने भी अपने भाई नन्दीवर्द्धनप्रमुख से पूछ कर वहाँ से विहार किया। जब तक भगवान नजर आते थे, तब तक स्वजनादिक वहीं खड़े रहे। फिर भगवान के गुणों को याद करते हुए सशोक मन से अपने अपने घर गये। जैनाचार्य श्रीमद् भट्टारक विजय राजेन्द्रसूरीश्वर-सङ्कलिते श्री कल्पसूत्र बालावबोधे पञ्चमं व्याख्यानं समाप्तम्।। 卐卐卐 षष्ठ व्याख्यान नन्दीवर्द्धन राजा की आज्ञा ले कर प्रभु का विहार / भगवान ने दीक्षा ले कर जब विहार किया, उस समय दो घड़ी दिन शेष था। फिर भगवान कुमारग्राम के बाहर काउस्सग्ग में रहे। उस समय एक किसान वहाँ आया। वह अपने बैल भगवान को सौंप कर घर गया। फिर जीम कर कुछ देर बाद पुनः वहाँ आया। इस बीच दिन भर हल चलाने के कारण थके हुए बैल चरते चरते कहीं चले गये। किसान ने चारों ओर ढूँढा, पर वे नहीं मिले। तब उसने भगवान से पूछा कि बैल कहाँ गये? उस समय भगवान मौन धारण कर कुछ नहीं बोले। फिर उस किसान ने जंगल में रात भर बैलों को ढूँढा, पर वे नहीं मिले। जब उसने वापस लौट कर देखा, तो बैल भगवान के निकट बैठे थे, क्योंकि वन में घूम-फिर कर वे पुनः वहीं आ गये थे। अब किसान क्रोधित हो कर भगवान से बोला कि हे पापी ! हे पाखंडी ! मेरे बैल तूने ही छिपा रखे थे। यह सब काम तूने ही किया लगता है। मुझे रात भर व्यर्थ घूमना पड़ा। इतना कह कर हाथ में SHA RE रास ले कर वह भगवान को मारने दौड़ा। उस समय इन्द्र महाराज ने