________________ (184) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध आप आठ कर्मरूप शत्रुओं का मर्दन करें। उत्तम शुक्लध्यान से अप्रमत्त रहते हुए आप विचरें। हे वीर ! आप आराधना-पताका ग्रहण करें। तीन लोकरूप रंग याने मल्ल के अखाड़े में अंधकाररहित अनुपम केवलज्ञान आप प्राप्त करें। मोक्षरूप परमपदप्राप्ति का केवली भगवान द्वारा दिखाया गया जो सीधा मार्ग है, उस मार्ग से आप जायें। किस तरह जायें? सो कहते आप बाईस परीषहरूप फौज का नाश करते जायें। हे क्षत्रियों में वृषभसमान ! आपकी जय हो। अनेक दिन, अनेक पक्ष, अनेक मास और अनेक वर्ष आपकी जय हो। दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु और तीन ऋतुओं का एक अयन होता है अर्थात् छह मास का एक अयन होता है। ऐसे अनेक अयनों तक तथा दो अयन का एक वर्ष होता है और पाँच वर्ष का एक संवत्सर होता है, ऐसे अनेक संवत्सरों तक आप परीषह तथा उपसर्गों में निर्भय रहें और बिजली, सिंहादिकों के डरावने भय-भैरव क्षमासहित सहन करें। धर्मपालन में आपको कोई विघ्न न करे। इतना कह कर उन्होंने जय-जयकार किया। ' भगवान श्री महावीरस्वामी जब दीक्षा लेने चले, तब लोग उन्हें हजारों नेत्रों से देखने लगे और देख देख कर खुश होने लगे। हजारों लोग वचन से स्तवन करने लगे। हजारों लोग मन में ऐसी चाहना करने लगे कि ये भगवान बहुत काल तक जीवित रहें। हजारों लोग यह मनोरथ करते थे कि जब ये तीर्थंकर बनेंगे, तब हम इनकी सेवा करेंगे। भगवान की कांति और रूपगुण देख कर लोग मन में यह भावना करते थे कि ये हमारे स्वामी हों। हजारों लोग अपने दाहिने हाथ की उँगली से दिखाते हुए यह कहते थे कि ये देखो भगवान बिराजे हैं। हजारों लोग याने हजारों पुरुष और हजारों स्त्रियाँ अंजली सहित हाथ जोड़ जोड़ कर प्रणाम कर रहे थे। उनके प्रणाम दाहिने हाथ से स्वीकारते हुए, हजारों घरों की श्रेणी पार करते हुए, वीणा, हस्तताल, वाद्य, गीत, मधुर, मनोहर जय:जय शब्द के साथ मिले हुए लोगों के स्वरों से सावधान होते हुए, सर्व ऋद्धिसहित, सर्व