________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (175) जिससे कर्मरूप वृक्ष की उत्पत्ति पुनः होवे ही नहीं। इन दोनों को दूर कर के चार घनघाती कर्म हटा देना। इससे तुझे केवलज्ञानरूप लक्ष्मी प्राप्त होगी। फिर उस केवलश्री का भोग कर के अन्त में चौदहवें गुणस्थान में योगनिरुंधन और शैलेषीकरण कर के शुक्लध्यान के चौथे पाये में कार्मणशरीर का छेदन कर के क्रियारहित हो कर सिद्ध के जीवों की राशि में मिल जाना। इससे... 55. मंगल महाश्री, दे विद्या परमेश्वरी- तुझे मंगलमयी महान भावलक्ष्मी प्राप्त होगी अर्थात् अपनी आत्मा की अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तचारित्र, अनन्तवीर्य, अगुरुलघु, अरूपी, अखंड,अक्षय, ऐसी महामंगलरूप भावलक्ष्मी प्राप्त कर सादिअनन्त भंग से अजर, अमर, अविनाशी हो कर तू महानन्द परमानन्द पद प्राप्त करेगा। इति तत्त्वं। ___(इसका अर्थ प्रकारान्तर से अलग अलग महापुरुषों द्वारा किया गया अनेक प्रकार का देखने में आया है, पर यहाँ ग्रंथगौरव के भय से मात्र यह एक ही प्रकार का अर्थ लिखा है।) प्रभु का विवाह और परिवार . ___ भगवान ने बाल्यावस्था पार कर जब यौवनवय में प्रवेश किया, तब माता-पिता ने शुभ मुहूर्त निकलवा कर बड़े ठाट-बाट से समरवीर सामन्त की पुत्री यशोदा के साथ प्रभु का विवाह किया। अनेक प्रतों में नरवर्म राजा की पुत्री यशोदा के साथ विवाह किया, ऐसे अक्षर लिखे हैं। यशोदारानी के साथ विषयसुख भोगते हुए भगवान के प्रियदर्शना नामक पुत्री हुई। भगवान की बहन के पुत्र जमाली के साथ उसका विवाह हुआ। इस प्रकार गृहस्थ जीवन जीते हुए भगवान अट्ठाईस वर्ष के हो गये। - महावीरस्वामी के पिता काश्यप गोत्रीय हैं। उनके तीन नाम हैं- एक सिद्धार्थ, दूसरा श्रेयांस और तीसरा यशस्वी। भगवान की माता का वासिष्ठ गोत्र है। उसके भी तीन नाम हैं- एक त्रिशला, दूसरा विदेहदिन्ना और तीसरा प्रीतिकारिणी। भगवान के काका का नाम सुपार्श्व है। भगवान के बड़े भाई का नाम नन्दीवर्द्धन तथा बहन का नाम सुदर्शना है। उनकी पत्नी का नाम यशोदा है। उसका कौडिन्य गोत्र है। भगवान की पुत्री का काश्यप गोत्र है। उसके अणोद्या और प्रियदर्शना ये दो नाम हैं। भगवान की दौहित्री