________________ (174) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध 47. लल्ला घोडो लातवा- लोभरूप घोड़े की लात से दूर रहना। 48. वव्वा विंगण वासदे- कामादिक व्यंगों को तेरे मनरूप घर में निवास मत देना। उन्हें बसने मत देना। यदि कामादिक तेरे मनरूप घर में प्रवेश करेंगे, तो आत्मा के उत्तम गुणरूप धन को चुरा लेंगे। 49. शशा कोटा मरडीया- खरगोश की तरह गरदन और कान ढंक कर गलियार होकर मत बैठना।धर्म में उद्यमवन्त होना। नहीं तो एक दिन कालरूप शिकारी खरगोश की तरह तुझे दुर्गति में ले जायेगा। जैसे खरगोश को पकड़ कर शिकारी उसकी गरदन मरोड़ डालता है, वैसे ही काल शिकारी तुझे भी मरोड़ देगा। 50. षष्षा खूणे फाडिया- सच बोलना। झूठ मत बोलना। एक भी मृषावाद वचन बोलने से सब गुणों और व्रतों का नाश हो जाता है। जैसे किसी वस्त्र का कोथला (थैला) जब कोने में फट जाता है, तब उसमें भरी हुई वस्तु धीरे-धीरे निकलती जाती है और अन्त में कोथला खाली हो जाता है, वैसे ही मिथ्या भाषण से तेरे गुण तथा व्रत खत्म हो जायेंगे। कोने में बैठ कर याने कोई न देखे इस प्रकार एकान्त में बैठ कर पाप करेगा, तो भी वह भविष्य में उदयकाल में अवश्य प्रकट होगा। 51. सारसे दंती लोक- यदि तू मोहराजा के साथ युद्ध करे, तो दन्ती याने हाथी की तरह साहसी बनना। जैसे हाथी साहसी हो कर सबसे आगे अगुआ हो कर किले के कपाट, गढ, कोट आदि सब तोड़ डालता है, वैसे ही तू भी मोहराजा का मिथ्यात्वरूप गढ तोड़ डालेगा। 52. हाहोलो हरिणेकलो- तू मोहरूप शिकारी के पाश में मत फँसना। पर जैसे हिरन शिकारी को देख कर भाग जाता है, वैसे ही तू भी छलाँग मार कर भाग जाना। यदि मोह के जाल में फंस गया, तो संसार के बंधन से नहीं छूटेगा। 53. लावे लच्छी दो पणिहार- यदि तू मोक्ष का अभिलाषी हो कर संसार के बन्धन तोड़ देगा, तो एक द्रव्यलक्ष्मी और दूसरी भावलक्ष्मी ये दोनों तेरे घर पानी भरेंगी। याने कि यदि अनुत्तरविमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ या मनुष्यभव में नरदेव (चक्रवर्ती) के रूप में उत्पन्न हुआ, तो भरतादिक के समान द्रव्यलक्ष्मी का पुण्य भोग कर अन्त में सिद्धपद प्राप्त कर भावलक्ष्मी का भी उपभोग करेगा। ऐसे सिद्ध के सुख कैसे प्राप्त होंगे? सो कहते हैं 54. खडिया खाटक मोर, पाले बांध्या चोर- इस संसार में षट्कायिक जीवों की आत्मा के जो ज्ञानादिक गुण हैं, उन्हें लूटने के लिए राग और द्वेष रूप दो चोर खड़े हैं। उन्हें पकड़ कर बाँध कर उनका समूल नाश कर देना- बीजमात्र हटा देना,