________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (169) किया। इस छोटे बालक ने मेरे सब सन्देह दूर कर दिये। यही बड़े आश्चर्य की बात है। फिर इन्द्र महाराज ने भगवान से शब्दों की उत्पत्ति पूछी। तब भगवान ने संज्ञासूत्र, परिभाषासूत्र, विधिसूत्र, नियमसूत्र, प्रतिषेधसूत्र, अतिदेशसूत्र, अधिकारसूत्र, अनुवादसूत्र, विभाषासूत्र और निपातसूत्र इन दस सूत्रों के अर्थ पृथक् पृथक् बताये। शब्द साधनिका भी बतायी। ___ तब लोगों ने जाना कि यह कोई परदेशी ब्राह्मण आया है। वह बालक से प्रश्न पूछता है और बालक उत्तर देता है। पर ऐसे उत्तर तो इस पढ़ाने वाले पंडित के माता-पिता भी नहीं दे सकते। सब लोग आश्चर्यपूर्वक कहने लगे कि इतने सारे शास्त्र इस बालक ने कहाँ पढ़े होंगे? फिर उपाध्याय भी चमत्कृत हो कर कहने लगा कि क्या ब्रह्मा स्वयं यहाँ साक्षात् पधारे हैं? ___ तब सब लोगों के मन का सन्देह मिटाने के लिए इन्द्र महाराज बोले कि हे लोगो ! यह वर्द्धमानकुमार है। इसे सामान्य पुरुष मत जानना। यह तीन लोक का नाथ है। सब पदार्थ जानता है, पर महागंभीर है, इसलिए पूछे बिना उत्तर नहीं देता। लोक में भी कहावत है कि- ठाल सो वाजणा। ठाला बोला पोला ढोल। जैसा आश्विन और कार्तिक का मेघ, असती स्त्री का स्नेह और शरद ऋतु का गर्जारव होता है, वैसा निरर्थक जानना। पर जो पंडित है, वह वर्षा के मेघ जैसा होता है। वह ठाला (बिना कारण) बोलता नहीं है। जो मूर्ख होता है, वह स्वयं को पंडित समझता है, पर जो महापुरुष होते हैं, वे बिना पूछे बोलते नहीं हैं। यह कह कर भगवान द्वारा प्ररूपित व्याकरण से संबंधित दस प्रकार के सूत्रों की वृत्ति तथा उदाहरण व्यवस्थित बना कर व्याकरण बनाया। वह जिनेन्द्र व्याकरण के नाम से आठ व्याकरणों की आदि में हुआ। फिर इन्द्र महाराज ने पंडितप्रमुख लोगों को बताया कि भगवान सर्वज्ञ हैं। इसके बाद अपना रूप प्रकट कर वे देवलोक में गये। उपाध्याय भगवान के पाँव पड़ कर बोला कि प्रभो ! आप ज्ञानसमुद्र हैं। मैं तो अपूर्णकलश के जैसा हूँ। इसलिए आप मेरे गुरु हैं। फिर भगवान ने