________________ (158) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध पीछे दिये पान तंबोल, केसर के छींटे रंगरोल। हीर चीर मखमल पटंबर, पहरने देत हैं सुन्दर।।३९।। फूलों की माल पहिरावे, हिये में हर्ष उभरावे। .. आभूषण पहिरामणी देवे, भूप सिद्धार्थ जस लेवे।।४।। प्रकारान्तर से भोजन और आभरण की विधि प्रकारान्तर से कच्छ-गुर्जरादि देशों में जिस प्रकार भोजन विधि कहने की रीति चलती है, उसके अनुसार अब यहाँ लिखते हैं- मांड्यो तोरण उत्तंग मांडवं, तरत आंगणुं बेसवार्नु न, तेतो नीला रत्नज तणुं। त्यां सरखा मांड्या आसन, बेसंता किसी विमासण। वली आगल मूकी सोनानी आंडणी, ते केम जाए छांडणी। ऊपर सोनाना थाल, अत्यन्त घणा विशाल। विचमां चोसठ वाटकी, लगार नहीं जास काटकी। गंगोदक दीधा थाल, कचोलामां हाथज लाल। हवे सघली पंक्ति बेठी, एटले पीरसणहारी पेठी। ते केहवी छ? तो के-सोल शणगार सज्यां, बीजा काम तज्यां। हाव भावनी रूडी, खलके हाथे सोनानी चूडी। लघुलाघवनी कला, मन कीधां मोकला। चित्तनी उदार, अति घणी दातार।. वोलती हाथ, परमेश्वर देजो तेहना साथ। धसमसती आवे, सघलाने मन भावे। पहेला फल हवे पिरसे, सघलानां मन हर्षे। एवी छे पिरसनारी भली मृगनयनी। होंसनी पूरी, धर्मनी शूरी। शीलवन्ती-शक्तिवन्ती एवी पिरसनारीओ छ। ते प्रथम खावानां फल लावे छ- पाकां आंबानी कातली, ते बूरा खांडशं भली। वली पातलां पाका केला, ते खांडशं कीधां भेलां। सखरां करणां, वली पीला वरणां। लीला नारंगा, दीसे महासुरंगा। नीली रायण, पिरसी भली भायण। दाडिमनी कली, खातां पुगे मन रली। लीबजा ने अखोड़, खातां पुगे मनना कोड़। द्राख ने बदाम, केई कागदी ने केई श्याम। सिलेमी खारेक ने खजूर, ते पिरस्या भरपूर। नालियेरी गरी, ते मालवी गोलशं भरी। लींबु खाटां ने मीठा, एहवा ते कदी न दीठां। चारोली ने पिस्तां, लोक जमे हसतां। वली शेलडी ने सीताफल, ते पण पिरस्या परिघल। ___ हवे पकवान आणे, ते कहेवा वखाणे। सतपडा खाजां, ते तुरत कीधां ताजां। सदलां ने साजां, जाणे प्रसादनां छाजां। एहवा पवित्र प्रधान मालवी.घऊँ, तेहने दलयां। तेहनी पडशुदी, महाचतुरे शोधी। घीये करमोई। तेहनां खाजां घीए तल्यां