________________ (30) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध करना उसे पर्युषणा कहते हैं। ऐसे पर्युषण पर्व आने पर साधुओं को कौन कौन से धर्मकार्य करने चाहिये ? सो कहते हैं- 1. चैत्यपरिपाटी करना याने सब चैत्यों में स्थित श्री अरिहंत की प्रतिमाओं के दर्शन वंदन भक्तिभाव पूर्वक करना. 2. लोच करना, 3. सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करना, 4. सकल श्रीसंघ से आपस में खमत-खामणा करना, 5. तेला करना याने अट्ठम का तप करना तथा पाँच दिन तक कल्पसूत्र पढ़ना, ये पाँच प्रवृत्तियाँ करनी चाहिये, ऐसा श्री तीर्थंकर-गणधरों ने कहा है। तथा पर्युषण आने पर श्रावकों को निम्नलिखित धर्मकार्य करने चाहिये- 1. आठ दिन तक अमारी-अहिंसा का पालन करना-करवाना, 2. यथाशक्ति बेला-तेला.का याने छट्ठ-अट्ठमादि का तप-जपादि करना, 3. आठ दिन तक सुपात्र को अविच्छिन्न दान देना. 4. सुपारी, नारियलप्रमुख की प्रभावना करना, 5. श्री वीतराग देव की प्रतिमा की पूजा करना तथा चैत्य-परिपाटी करना. 6. सर्व साधुओं को वन्दन करना, 7. श्रीसंघ की भक्ति करना, 8. सचित्त वस्तु का परिहार करना, 9. ब्रह्मचर्य पालन करना. 10. सब प्रकार के आरंभ से संबंधित कार्यों का त्याग करना. 11. अपनी शक्ति के अनुसार सन्मार्ग में द्रव्य खर्च करना, 12. श्रुतज्ञान की भक्ति करना, 13. अभयदान देना, 14. कर्मक्षयनिमित्त काउसग्ग करना, 15. प्रतिदिन दोनों समय प्रतिक्रमण करना, 16. महामहोत्सव करना, 17. कल्पसूत्र पढ़ने वाले की शुद्ध खान-पान आदि से सहायता करना, उसकी सुख-समाधि की खबर लेना, 18. श्रीसंघ का आपस में खमत-खामणा करना, 19. भावना का चिन्तन करना, 20. कल्पसूत्र संपूर्ण अक्षर अक्षर श्रवण करना। जो भव्य जीव हो, वह कल्पसूत्र सुने। यह कल्पसूत्र विधिपूर्वक सुनने वाला मनुष्य बारहवें देवलोक में उत्पन्न हो कर देवों के सुख भोगता तीन अधिकार दर्शक गाथा अब व्याख्यान पढ़ते समय प्रथम मंगलरूप गाथा बोलना