________________ (120) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध मूर्ख व्यक्ति के सम्मुख तो बिल्कुल नहीं कहना, क्योंकि जैसा फल सुनता है, वैसा ही फल वह पाता है। इसलिए उत्तम पुरुष के सम्मुख ही कहना चाहिये। इस पर मूलदेव का दृष्टान्त कहते हैं। मूलदेव की कथा . मूलदेव एक राजपुत्र था। वह अपने पिता को अप्रिय था। उसे दान देने का व्यसन था, इसलिए राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया। घूमते-घूमते वह एक गाँव में जा पहुँचा। यद्यपि वह स्वयं महाधर्मी जैनमति था, पर खाने के लिए कुछ न होने के कारण वह नगर में माँगने के लिए गया। वहाँ एक वणिक ने भैंस को खिलाने के लिए उड़द पकाये थे। उसने मूलदेव को उड़द दिये। उड़द ले कर वह उद्यान में गया। वहाँ जा कर सोचने लगा कि किसी अतिथि को भोजन दे कर फिर मैं भोजन करूँ। इतने में एक तपस्वी साधु वहाँ आ पहुँचा। मूलदेव ने उस तपस्वी को सब बाकुले वहोरा दिये। फिर वह प्रसन्न हो कर सो गया। नींद में उसने एक सपना देखा। सपने में देखा कि उसने सम्पूर्ण चन्द्रमा निराबाध रूप से निगल लिया है। स्वप्न देख कर वह जाग गया। जिस उद्यान में मूलदेव सोया था, वहाँ एक बाबा का मठ था। उस बाबा के शिष्य ने भी वही सपना देखा, जो मूलदेव ने देखा था। स्वप्न देख कर वह भी जाग गया। सुबह के समय उसने अपने गुरु को स्वप्न का हाल कह सुनाया। तब गुरु ने कहा कि आज भिक्षा में तुझे चन्द्रमा जितनी बड़ी घी से चुपड़ी हुई रोटी मिलेगी और साथ में गुड़ भी मिलेगा। यह सुन कर शिष्य प्रसन्न हो कर भिक्षा लेने गया, तब उसे गुरु के कहे अनुसार रोटी मिली। ___ यह बात सुन कर राजकुमार मूलदेव ने सोचा कि यदि इसे मैं अपने स्वप्न की बात कहूँगा, तो मुझे भी यह इतना ही फल बतायेगा, क्योंकि जो स्वप्न इसके शिष्य ने देखा है, वही स्वप्न मैंने भी देखा है। इसलिए इसे तो यह बात नहीं बतानी चाहिये। यह सोच कर हाथ में श्रीफल ले कर वह