________________ (128) . श्री कल्पसूत्र-बालावबोध देखती है, चार स्वप्न बलदेव की माता देखती है तथा एक स्वप्न मांडलिक राजा की माता देखती है। ऐसा स्वप्नपाठकों ने कहा है। तुमने चौदह स्वप्न देखे हैं, इसलिए तुम्हें चक्रवर्ती या तीर्थंकर होने वाला पुत्र होगा। . इसके बाद त्रिशलादेवी यह अर्थ सुन कर मन में बहुत प्रसन्न हुई। यावत् स्वप्नों का अर्थ धारण कर सिद्धार्थ राजा की आज्ञा ले कर नाना प्रकार के मणिरत्नजड़ित बाजोठ से उठ कर उतावल रहित राजहंस की गति से चलती हुई अपने भवन में गयी। वहाँ जा कर उसने अपने कक्ष में प्रवेश किया। गुणनिष्पन्न नामस्थापन का मनोरथ जिस दिन से श्रमण भगवन्त श्री महावीरस्वामी को हरिणगमेषी देव ने संहरण कर के राजकुल में रखा, उस दिन से व्यन्तरनिकाय के तिर्यग्जंभक देव जो तिर्यक् लोक में वैताढ्य पर्वत की मेखला में निवास करते हैं और वैश्रमण नामक इन्द्र महाराज के भंडारी धनद की आज्ञा का पालन करने वाले हैं, वे शक्रेन्द्र के हुक्म से सब प्रकार का धन सिद्धार्थ राजा के आवास में भरने लगे। वह धन कैसा है? जिस धन के स्वामी हीन हो गये, जिस धन का संचय करने वाले, निर्माण करने वाले मृत्यु को प्राप्त हो गये, उनके गोत्र का कोई भी नहीं बचा, जिस धन के स्वामी सर्वथा समाप्त हो गये, गाड़ने वालों का विच्छेद हो गया, गाड़ने वालों के कुल-गीत्र का भी विच्छेद हो गया, ऐसा वह धन है। ___अब वे जिन स्थानों में रख कर मर गये, उन स्थानकों के नाम कहते हैं- बुद्धि के गुण जहाँ चले जाते हैं, उसे गाँव कहते हैं। वहाँ जमा कर मर गये और वह धन वहीं रह गया ऐसा धन। जहाँ कर नहीं लगता, उसे नगर कहते हैं। महानगर को कर्बट कहते हैं। शहर से दो कोस दूरी पर जो गाँव होता है, उसे मंडप कहते हैं। जिसके चारों ओर गाँव बसता है, उसे द्रोणमुख कहते हैं। जहाँ जलमार्ग और स्थलमार्ग से पहुँचा जाता है, उसे पट्टण कहते हैं। जहाँ तापस बसते हैं, उसे आश्रम कहते हैं। तीर्थभूमि पर जो गाँव होता है,उसे संवाह कहते हैं। जहाँ सार्थवाह डेरा डालते हैं,उसे