________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (139) नौ महीने और आठ दिन, श्री नमिनाथजी नौ महीने और आठ दिन, श्री नेमिनाथजी नौ महीने और आठ दिन, श्री पार्श्वनाथजी नौ महीने और छह दिन तथा श्री महावीरस्वामी नौ महीने और साढ़े सात दिन गर्भ में रहे। यह चौबीस तीर्थंकरों की गर्भस्थिति कही।) ...उच्च राशि के सात ग्रहों में पहला चन्द्रयोग होने पर, निर्मल दस दिशाएँ बादल और धूल-रज से रहित होने पर, जन्मवेला में अंधकाररहित, अग्नि-दावानलप्रमुख उपद्रवरहित दिशाएँ होने पर ऐसे समय में जब कि सब पक्षी जयकारी शब्द बोल रहे थे, प्रदक्षिणावर्त सानुकूल शीतल मन्द सुगन्ध सहित हवा धरती पर चल रही थी, पृथ्वी पर सब प्रकार के धान्य उतपन्न हुए थे, उसके कारण हर्षित हुए सब देशों के लोग क्रीड़ा कर रहे थे, उस काल में मध्य रात्रि के समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के तीसरे पाये के साथ चन्द्रमा का योग होने पर रोगरहित ऐसी त्रिशलारानी ने रोगरहित और तीन ज्ञानसहित ऐसे पुत्ररत्न को जन्म दिया। जन्मकुंडली स्थापना- स्वस्तिश्री ऋद्धिवृद्धिजयोर्माङ्गल्याभ्युदयश्च संवत् 2691 वर्षे मासोत्तम मासे चैत्रमासे शुक्लपक्षे त्रयोदशी तिथौ भौमवासरे घटी. 55 पल. 11, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र घटी. 60, ध्रुवयोग घटी. 45 पल. 55, तैतल कर्णे एवं पंचांग शुद्धौ श्री इष्ट घटी. 45 पल. 15, इक्ष्वाकुवंशे श्री क्षत्रियकुण्डपुरनगरे सिद्धार्थनृपगृहे भार्या त्रिशला क्षत्रियाणी कुक्षौ पुत्ररत्नमजीजनत्।। 1 के. . ब. स.