________________ (142) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध वहाँ जा कर भगवान तथा भगवान की माता को नमस्कार कर के भगवान के दोनों ओर चार-चार खड़ी रहीं। वे चामर हाथ में ले कर दुलाने लगीं। ___रुचकद्वीप की विदिशा में पर्वत पर रहने वाली विचित्रा, चित्रकनका, तारा और सौदामिनी ये चार दिक्कुमारिकाएँ वहाँ जा कर भगवान तथा भगवान की माता को वन्दन कर के हाथ में दीपक ले कर खड़ी रहीं। . ___ रुचकद्वीप की विदिशा में रहने वाली रूपा, रूपासिका, सुरूपा और रूपकावती इन चार दिक्कुमारिकाओं ने वहाँ जा कर भगवन्त तथा भगवन्त की माता को नमस्कार कर के भगवन्त का चार अंगुल प्रमाण छोड़ कर नाल काटा। फिर भूमि में गड्ढा खोद कर उसे गाड़ दिया। उस पर वैडूर्यरत्न का चौखंड चबूतरा बनाया। उस पर दर्भ बोया। फिर सूतिकागृह से अलग एक पूर्व दिशा में, एक दक्षिण दिशा में और एक उत्तर दिशा में इस प्रकार तीन स्थान पर तीन कदलीगृह बनाये। उनमें सिंहासन रखे। फिर दक्षिण दिशा के कदलीगृह में भगवान तथा भगवान की माता को ले जा कर सिंहासन पर बिठा कर सुखकारक सुगंधित तेलों से मर्दन किया। फिर पूर्व दिशा के कदलीगृहं में ले जा कर सिंहासन पर बिठा कर स्नान कराया और चन्दन-लेपन किया। फिर उत्तर दिशा के कदलीगह में सिंहासन पर बिठा कर अरणीकाष्ठ घिस कर अग्नि प्रज्वलित कर चन्दनकाष्ठ से शान्ति-पुष्टि-कारक होम किया। उस होम की रक्षा-पोटली भगवान तथा भगवान की माता के हाथ में बाँधी। फिर 'हे भगवन् ! पर्वतायुर्भव।' ऐसी आशीष दे कर दो मणिमय गोले उछाले। फिर उन्हें भगवान के खेलने के लिए पल्यंक पर बाँध कर गीतगान कर के भगवान तथा भगवान की माता को जन्मस्थान पर छोड़ कर वे सब अपनेअपने स्थान पर गयीं। __ प्रत्येक दिक्कुमारिका के चार-चार महत्तरा देवियाँ हैं, चार हजार सामानिक देव हैं, सोलह हजार अंगरक्षक देव हैं और सात अनीकाधिपति हैं। इनके अलावा अन्य अनेक देव-देवियों के परिवार सहित एक योजन के विमान में बैठ कर प्रभु का जन्म महोत्सव करने के लिए वे जैसे आती हैं, वैसे ही महोत्सव कर के अपने