________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (141) भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, तोयधरा, विचित्रा, पुष्पमाला और आनंदिता इन आठ दिक्कुमारिकाओं ने त्रिशला माता के पास जा कर भगवान तथा भगवान की माता को नमस्कार कर के ईशानकोण में एक सूतिकाघर बनाया। फिर एक योजनप्रमाण भूमि संवर्तक वायु से शुद्ध कर के काँटेकंकर आदि दूर कर उसे सुगंधित किया। फिर ऊर्ध्वलोक में सुमेरु पर्वत पर नन्दनवन के कूटों में रहने वाली मेघंकरा, सुमेघा, मेघवती, मेघमालिनी, सुवत्सा, वत्समित्रा, वारिषेणा और . बलाहिका इन आठ दिक्कुमारिकाओं ने वहाँ जा कर प्रभु को तथा प्रभु की माता को नमस्कार कर के उस सूतिका घर में सुगंधित जलसहित पुष्पवर्षा की। फिर वे गीत गाती हुई वहाँ खड़ी रहीं। फिर रुचकद्वीप के पूर्व में पर्वत पर रहने वाली नन्दोत्तरा, नंदा, आनन्दा, नन्दीवर्द्धना, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता ये आठ दिक्कुमारिकाएँ वहाँ जा कर. भगवान तथा भगवान की माता को नमस्कार कर के मुख देखने के लिए हाथ में दर्पण ले कर भगवान के सम्मुख गीत गाती खड़ी रहीं। ___ रुचकद्वीप के दक्षिण में पर्वत पर रहने वाली समाहारा, सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती, शेषवती, चित्रगुप्ता और वसुंधरा इन आठ दिक्कुमारिकाओं ने वहाँ जा कर भगवान को तथा भगवान की माता को नमस्कार कर के सोने के चंगारकलश सुगंधित जल से भर कर हाथ में धारण कर भगवान की माता को स्नान कराया। फिर उन्होंने भगवान के आगे गीत-गान नाटारंभ किया। ... रुचकद्वीप के पश्चिम में पर्वत पर रहने वाली इलादेवी, सुरादेवी, पृथिवी, पद्मावती, एकनासा, नवमिका, भद्रा और सीता ये आठ दिक्कुमारिकाएँ वहाँ जा कर प्रभु को तथा प्रभु की माता को नमस्कार कर के माता के सम्मुख पवन करने के लिए हाथ में पंखे ले कर खडी रहीं। रुचकद्वीप के उत्तर में पर्वत पर रहने वाली अलंबुषा, मितकेशी, पुंडरीका, वारुणी, हासा, सर्वप्रभा, श्री और ही ये आठ दिक्कुमारिकाएँ