________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (127) उंगलियाँ बतायीं। तब आपके भट्टाचार्य ने मुट्ठी बतायी। इससे मैं समझ गया कि इन्द्रियाँ पाँच हैं सही, पर इन्हें वश में रखना चाहिये। अतः मैंने जान लिया कि यह पंडित त्यागी, ज्ञानी और जितेन्द्रिय है। इस तरह वाद हुआ और मैं हार गया। इसके जैसा दूसरा पंडित मैंने कहीं भी देखा नहीं है। इतना कह कर दक्षिण भट्टाचार्य मानभ्रष्ट हो कर अपने देश चला गया। __ बाद में भोज राजा ने गांगा तेली से पूछा कि तुमने किस प्रकार का वाद किया? और वह कैसे किया? तब तेली बोला कि महाराज ! दक्षिण भट्टाचार्य बहुत बुरा आदमी है। वह मुझसे कहने लगा कि यह तेरी जो एक आँख है, उसे मैं फोड़ दूंगा। यह बताने के लिए उसने एक उंगली ऊँची की। तब मैंने दो उंगलियाँ ऊँची कर के उसे समझाया कि तू तो एक आँख फोड़ते रह जायेगा, पर उसके पहले मैं तेरी दोनों आँखें फोड़ दूंगा। तब उसने मुझे पंजा दिखा कर कहा कि मैं तुझे थप्पड़ मारूँगा, उससे तेरा मुँह फिर जायेगा। इस पर मैंने उसे मुट्ठी बता कर कहा कि मैं तुझे एक मुट्ठी मारूँगा, तो तू पाताल में चला जायेगा। ऐसी बात गांगा तेली के मुख से सुन कर राजाप्रमुख सब सभाजनों को हँसी आ गयी। उन सबने कहा कि यह महाभाग्यवान और सुसिद्धिवान है। इतना कह कर वस्त्रादिक भेंट में दे कर सन्मान सहित उसे उसके घर पहुँचाया। .. फिर सिद्धार्थ राजा ने कहा कि हे स्वप्नपाठको! तुम सब सुसिद्धिवान हो। इससे मेरे लिए तो तुम्हारा कथन सत्य हो। इस प्रकार कह कर स्वप्नों को अच्छी तरह धारण कर स्वप्न-लक्षण-पाठकों को अशन, पान, खादिम और स्वादिमादिक चार प्रकार का आहार खिला कर फूल, फल, गंध, माला, अलंकारादिक से उनका सत्कार सम्मान किया तथा जीवन भर चलती रहे, ऐसी आजीविका प्रदान की। अर्थात् ग्राम-नगरप्रमुख दे कर उन्हें बिदा किया। इसके बाद सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा सिंहासन से उठ कर जहाँ त्रिशला क्षत्रियाणी पडिच्छ (पर्दा) में बैठी थी, वहाँ जा कर बोले कि हे देवानुप्रिये! स्वप्नशास्त्र में बयालीस सामान्य स्वप्न तथा तीस महास्वप्न इस प्रकार कुल बहत्तर स्वप्न कहे हैं। उन तीस में से चौदह महास्वप्न तीर्थंकर और चक्रवर्ती की माता देखती है। उन चौदह स्वप्नों में से सात स्वप्न वासुदेव की माता