________________ (130) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध माता पर अनुकंपा कर के प्रभु गर्भ में निश्चल रहे श्रमण भगवन्त श्री महावीरस्वामी ने अपनी माता पर अनुकम्पा याने दया ला कर सोचा कि मेरे हलन-चलन से माता को कष्ट होता है। यह सोच कर वे माता की कोख में निश्चल रहे। उन्होंने हिलना-डुलना बन्द कर दिया। वे अकंप रहे तथा उन्होंने अपने अंगोपांग स्थिर कर दिये। इस प्रकार वे गर्भ में रहे। यहाँ कवि उत्प्रेक्षा करता है कि मानो भगवान मोहराजा को जीतने के लिए क्या एकान्त में विचार कर रहे हैं? अथवा क्या किसी परब्रह्म का अगोचर ध्यान कर रहे हैं? अथवा अपने आत्मगुण को साधने के लिए क्या कल्याणरस में लीन हो रहे हैं? अथवा कामदेव का निग्रह करने के लिए क्या रूपपरावर्तन की विद्या साध रहे हैं? इस तरह जो श्री भगवान माता की कोख में रहे, वे आपकी कल्याणरूप लक्ष्मी के लिए हों। प्रभु की निश्चलता से माता को शोक तब त्रिशला माता के मन में ऐसा हुआ कि मेरा गर्भ कोई देव उठा ले गया है, मेरा गर्भ मर गया है, मेरे गर्भ का च्यवन हो गया है तथा मेरा गर्भ गल गया है। मेरा गर्भ पहले हलन-चलन करता था, पर अब वह हलनचलन नहीं करता। इससे मालूम होता है कि गर्भ को कुशल नहीं है। यह सोच कर उसका मन डाँवाडोल होने लगा। वह चिन्तासागर में डूब गयी और हाथ पर मुख रख कर नीची नजर कर के आर्तध्यान करने लगी। वह इस प्रकार से कि___मेरा गर्भ जाता रहा, इसलिए मैं अवश्य ही अभागिन हूँ, हीन पुण्यवान हूँ। अभागे के घर में चिन्तामणि रत्न नहीं रहता। दरिद्री के घर में निधान कैसे रह सकता है? जैसे मारवाड़ में कल्पवृक्ष नहीं होता; वैसे ही पुण्यहीन को प्यास लगने पर अमृतपान करने की इच्छा हो जाये, तो वह कैसे पूर्ण हो सकती है? हे दैव ! हे कर्म ! तू महानिर्दयी है, निर्लज्ज है। तुझे करुणा . नहीं है। अरे पापिष्ट ! दुष्ट ! निरपराध लोगों को मारने वाले ! तू मेरा बिना . कारण दुश्मन क्यों हुआ? मैंने तेरा ऐसा क्या अपराध किया था कि जिससे