________________ (134) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध बिल के पास औषधि है। उसका मूल ले कर पाषाण पर घिस कर उसके छींटे दुश्मन पर डालना। इससे वह जल कर भस्म हो जायेगा। तब वह स्त्री औषधि का मूल ले कर वह अमृतमूली पाषाण पर घिस कर सर्प पर छींटे डालने के लिए तैयार हुई। तब सर्प ने कहा कि मैंने तुझे औषधि बतायी और तू मुझे ही जला रही है? गुण पर अवगुण कर रही है। तब उस स्त्री ने कहा कि गुण का भाई अवगुण है, ऐसा तुमने ही तुम्हारे मुख से कहा है। इसलिए अब तुम कुछ मत बोलो। इतना कह कर उसने सर्प पर छींटे डाले। इससे वह जल कर भस्म हो गया। इति कलिकाल दृष्टान्त। ___ यह सोच कर गर्भ में रहे हुए भगवान कनिष्ठिका उँगली हिला कर एकदेश से जरा से हिले। गर्भ के हिलने से माता को प्रमोद ___गर्भ के हिलने से त्रिशलाजी ने जान लिया कि मेरा गर्भ अवस्थित है। मैंने व्यर्थ ही खोटा शोक किया। यह सोच कर वह कहने लगी कि हे सखियो ! मेरा गर्भ सकुशल है। मैंने अज्ञान के कारण विलाप किया। मेरे भाग्य बड़े हैं। मैं धन्य, कृतपुण्य और त्रिभुवनमान्य हूँ। मेरा जीना प्रशंसनीय है। मुझे जैनधर्म के पालन का फल प्राप्त हुआ। मैंने पूर्व में जिस धर्म का पालन किया था, वह प्रकट हुआ। मेरा जीना सफल हुआ। ___ तब सखियाँ जय-जय करने लगीं। अष्टमंगल रचे गये। कुंकुम छाँटा गया। राजा को बधाई दी गयी। राजा भी खुश हुआ। बाजे बजने लगे। नाटक महोत्सव हुए। तोरण बाँधे गये। बन्दीजन जय-जयकार करने लगे। कैदखाने खोल दिये गये। अनेक लोग मिले। मांगलिक बातों से कोलाहल हुआ। महादान दिया गया। इस प्रकार के आनन्द से राजा की राजधानी आनन्दमय हो गई। चारों ओर खुशियाँ छा गयीं। सूत्रकार कहते हैं कि गर्भ का कुशल मालूम न होने के कारण सिद्धार्थ राजा के घर में मृदंग, ताल, वीणा, हस्तताल, नाटक इत्यादि लोकवल्लभ सब कार्य आनन्दरहित हो गये थे। इससे महावीरस्वामी माता को शोकातुर जान कर एकदेश से जरा से हिले, तब त्रिशला माता हृदय में